घर एक सपना होता है...
बन जाये तो अपना होता है...
बन के टूट जाए तो बेगाना होता है...
घर एक सपना होता है...
घर अपनो के बीच का आगंन होता है..
बच्चो की किलकारियों से गूजता सपना होता है...
घर एक सपना होता है...
पापा मम्मी चाचा चाची से अपना होता है...
रिश्तों के मजबूत धागों का गवाह होता है...
घर एक सपना होता है...
शालिनी राय
Labels: कविता
6 Comments:
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बहुत ही सुक्ष्म अनुभुतियों को आपने सुंदर तरीके से इस रचना में पिरो दिया है. बहुत शुभकामनाएं.