सूर्य से प्रकाश और गर्मी पैदा होने की प्रक्रिया को धरती पर दोहराने की तैयारी चल रही है। इसके लिए फ्रांस के कडाराश में एक फ्यूजन एनर्जी रिएक्टर बनाने का काम शुरू हो चुका है। भारत भी इसमें योगदान कर रहा है। इसे दुनिया का अब तक का सबसे साझा अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम माना जा रहा है। इसमें योगदान करने के लिए इटर इंडिया एजंसी की स्थापना की गई है। फ्यूजन एनर्जी रिसर्च पर सहयोग के लिए भारत और यूरोपीय संघ की शिखर बैठक में समझौता हुआ था।
इटर प्रॉजेक्ट फ्यूजन एनर्जी रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय थर्मो न्यूक्लियर एक्सपेरिमंटल रिएक्टर (इटर) प्रॉजेक्ट नाम से जाना जाता है। इटर इंडिया द्वरा फ्यूजन एनर्जी रिएक्टर के कई अहम उपकरणों का भारत में विकास और निर्माण किया जाएगा। इन्हें कडाराश में लगाने की जिम्मेदारी भी इटर इंडिया की होगी। इस प्रॉजेक्ट के तहत वैक्यूम वेसल, हाई वोल्टेज पावर सप्लाई, कूलिंग वॉटर सिस्टम और कुछ अन्य प्रणालियों की सप्लाई की जाएगी। गुजरात के गांधीनगर स्थित प्लाज्मा शोध संस्थान की अगुवाई में भारत का इटर में योगदान होगा। गांधीनगर में स्टडी स्टेट टोकामाक-1 की स्थापना की जा रही है। गांधीनगर में इस प्रयोग को कडाराश में होने वाली रिसर्च का पूर्वाभ्यास माना जा रहा है।
भारत की भागीदारी यूरोपीय संघ, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, रूस और अमेरिका के साथ अब भारत भी इस अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रॉजेक्ट में शामिल हो गया है। भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं और उपलब्धियों के मद्देनजर साझेदार बनाया गया है। इस प्रॉजेक्ट पर 16 अरब डॉलर का खर्च आने का अनुमान है। इसका दस फीसदी भारत को देना होगा। प्रॉजेक्ट पूरा होने में दो से तीन दशक तक लग सकते हैं। इस प्रॉजेक्ट में यूरोपीय संघ की भागीदारी 34 प्रतिशत, जापान 13 प्रतिशत, अमेरिका 13 प्रतिशत और चीन, दक्षिण कोरिया, रूस और भारत की हिस्सेदारी 10-10 फीसदी की होगी।
आईएईए की निगरानी यूरोपीय परिषद के प्रेजिडंट स्वीडन के प्रधानमंत्री फ्रेडरिक रनेफेल्ट और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में परमाणु ऊर्जा विभाग के चेयरमैन डॉ. अनिल काकोडकर और यूरोपीय आयोग की विदेशी मामलों की आयुक्त बेनिता फेरेरो वाल्डनर ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इटर समझौता 21 नवंबर 2006 को पैरिस में किया गया। 24 अक्टूबर 2007 को सभी भागीदार देशों ने इसे अनुमोदित किया। इटर के संचालन की जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजंसी (आईएईए) की है।
टोकामाक अवधारणा इटर प्रॉजेक्ट चुंबकीय खिंचाव की टोकामाक अवधारणा पर आधारित है। इसमें गैसीय स्वरूप वाले प्लाज्मा को एक वैक्यूम वेसल में भरा जाता है। ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के आइसोटोप ड्यूटीरियम और ट्रिटियम का मिश्रण इस्तेमाल होता है। 15 करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर प्लाज्मा को गर्म किया जाता है। इससे हॉट प्लाज्मा पैदा होती है। वैक्यूम वेसल की दीवारों से हॉट प्लाज्मा को दूर रखने के लिए बहुत तेज चुंबकीय क्षेत्र पैदा किया जाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र वेसल के चारों ओर सुपरकंडक्टिंग कॉइल से पैदा होता है।
इटर प्रॉजेक्ट फ्यूजन एनर्जी रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय थर्मो न्यूक्लियर एक्सपेरिमंटल रिएक्टर (इटर) प्रॉजेक्ट नाम से जाना जाता है। इटर इंडिया द्वरा फ्यूजन एनर्जी रिएक्टर के कई अहम उपकरणों का भारत में विकास और निर्माण किया जाएगा। इन्हें कडाराश में लगाने की जिम्मेदारी भी इटर इंडिया की होगी। इस प्रॉजेक्ट के तहत वैक्यूम वेसल, हाई वोल्टेज पावर सप्लाई, कूलिंग वॉटर सिस्टम और कुछ अन्य प्रणालियों की सप्लाई की जाएगी। गुजरात के गांधीनगर स्थित प्लाज्मा शोध संस्थान की अगुवाई में भारत का इटर में योगदान होगा। गांधीनगर में स्टडी स्टेट टोकामाक-1 की स्थापना की जा रही है। गांधीनगर में इस प्रयोग को कडाराश में होने वाली रिसर्च का पूर्वाभ्यास माना जा रहा है।
भारत की भागीदारी यूरोपीय संघ, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, रूस और अमेरिका के साथ अब भारत भी इस अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रॉजेक्ट में शामिल हो गया है। भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं और उपलब्धियों के मद्देनजर साझेदार बनाया गया है। इस प्रॉजेक्ट पर 16 अरब डॉलर का खर्च आने का अनुमान है। इसका दस फीसदी भारत को देना होगा। प्रॉजेक्ट पूरा होने में दो से तीन दशक तक लग सकते हैं। इस प्रॉजेक्ट में यूरोपीय संघ की भागीदारी 34 प्रतिशत, जापान 13 प्रतिशत, अमेरिका 13 प्रतिशत और चीन, दक्षिण कोरिया, रूस और भारत की हिस्सेदारी 10-10 फीसदी की होगी।
आईएईए की निगरानी यूरोपीय परिषद के प्रेजिडंट स्वीडन के प्रधानमंत्री फ्रेडरिक रनेफेल्ट और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में परमाणु ऊर्जा विभाग के चेयरमैन डॉ. अनिल काकोडकर और यूरोपीय आयोग की विदेशी मामलों की आयुक्त बेनिता फेरेरो वाल्डनर ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इटर समझौता 21 नवंबर 2006 को पैरिस में किया गया। 24 अक्टूबर 2007 को सभी भागीदार देशों ने इसे अनुमोदित किया। इटर के संचालन की जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजंसी (आईएईए) की है।
टोकामाक अवधारणा इटर प्रॉजेक्ट चुंबकीय खिंचाव की टोकामाक अवधारणा पर आधारित है। इसमें गैसीय स्वरूप वाले प्लाज्मा को एक वैक्यूम वेसल में भरा जाता है। ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के आइसोटोप ड्यूटीरियम और ट्रिटियम का मिश्रण इस्तेमाल होता है। 15 करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर प्लाज्मा को गर्म किया जाता है। इससे हॉट प्लाज्मा पैदा होती है। वैक्यूम वेसल की दीवारों से हॉट प्लाज्मा को दूर रखने के लिए बहुत तेज चुंबकीय क्षेत्र पैदा किया जाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र वेसल के चारों ओर सुपरकंडक्टिंग कॉइल से पैदा होता है।
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