त्योहार
जिंदगी के रास्तों पर सजी दुकानों से हो गए हैं।
समान से लेकर दुकान तक
सबकुछ बिकाऊ है यहां।
बेमानी सी लगती हैं त्योहारों की ये दुकानें।
बेमानी सी लगती हैं त्योहारों की ये दुकानें।
खुशियों से लेकर परम्पराओं तक
सबकुछ सेल में सजा है।
पैसों से चंद मिनटों में सबकुछ खरीद लेने की
कुछ जिदों के आगे
फिलहाल मेरे एहसासों की जेबें खाली है ।
शालिनी राय तारीख २६ सितम्बर 2009
Labels: कविता
2 Comments:
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Mohalla Live6 years ago
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जय श्रीराम6 years ago
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अच्छी रचना है