पत्रकारिता से जुड़ा हर दूसरा आदमी दबाव से परेशान है... ऊपर बैठा हर आदमी अपने नीचे वालों पर चढ़कर..उसे मसल कर आगे आना चाहता है...या फिर किसी को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकता है... पत्रकार जो कभी सबकी आवाज उठाने का दम रखते थे... आज खुद अपनी तबाही पर खामोश हैं... पत्रकारिता कर रहा लगभग हर आदमी किसी न किसी बीमारी का शिकार हो रहा है...कोई दिक्कत को समझना नहीं चाहता...आखिर ऐसा हो क्यों हो रहा है... पत्रकारिता प्रेशन कुकर क्यों बनती जा रही है...आखिर क्यों आप हम ये नहीं समझ रहे कि इस दौड़ का अंत कितना दर्दनाक है...कोई खुश नहीं है...खुद सोचिए बतौर पत्रकार आप कहां खड़े हैं... आखिर हम सब कर क्या कर रहे हैं... हम खुद टेंशन की उंगली पकड़कर खुद को दर्दनाक मौत की तरफ ढ़केल रहे हैं... अशोक उपाध्याय जी को याद करिए... उनकी मौत सामान्य मौत नहीं थी....उनकी मौत मर्डर थी... और उनको मौत के मुंह में ढकेलने वाले वही थे...जो रहनुमाओं का दंभ पाले मीडिया को मारने पर उतारु हैं...रोज रोज झूठ की कब्र खोदकर...पत्रकारिता को जिंदा दफन करने में जुटे हैं... अशोक जी मरे नहीं मारे गए... वो खामोशी से सबकुछ सही होने का इंतजार करते रहे... लेकिन उनकी खामोशी को कमजोरी समझकर पत्रकारिता के दलाल अपना उल्लू सीधा करते रहे... सवाल ये है कि जिस पत्रकारिता ने देश की आज़ादी के लिए आवाज़ उठाई... तो अपने लिए बोलने की ताकत क्यो नहीं है... हम सब चुप क्यों है...क्यों हमसब मैनजमेंट के हाथ की कठपुतली बन कर रह गए है... क्यों हम आपने लिए आवाज नहीं उठा रहे है...आज अशोक जी गए है..कल हम आप में से कोई भी जा सकता है...इससे पहले कि जिंदगी मौत से बदतर बन जाए...क्यों ना जिंदगी को गले लगा लिया जाए...और अपने दिल से बोला जाए आल इज वेल...क्योकि टेंशन हमें सिर्फ जिंदगी से बदतर जिदंगी देगी... लेकिन जिन्दगी आपको वो सब देगी..जो आप चाहते है...जो आपका सपना है...तो अब देर मत करिए...आगे बढ़िए और जिंदगी के एक भी दिन को जाया न होने दीजिए...ये मेरी हर मीडिया से जुड़े ... मेरे जैसों से विनती है...फिलहाल कहने को बहुत कुछ है....
(शालिनी राय) ....
एक कहानी और है गौर से पढ़िएगा...ये गुस्सा अशोक जी की मौत पर था... मेल काफी दिन से मेरे पास पड़ी थी... पब्लिश कर रही हूं...इस घटना के पात्र ना तो काल्पनिक हैं...और ना ही घटना... गौर से पढ़िएगा तो पात्रों के चेहरे आपके सामने होंगे...
एक चिरौंजी लाल गुप्ता जी हैं... साम दाम दंड भेद के साथ साथ ईमेल से भी मीडिया में रहने के गुर जानते हैं... खुद को मशहूर मानते हैं और उनके अलावा सभी उन्हें कुख्यात... ह्यूमन बम मानते हैं... लेकिन ये ह्यूमन बम राजनीति की आदत में अशोक जी को न शामिल करे तो ये उनके स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा... कमीनपने की हद तक गिरने वाला ये शख्स (ये खुद इन्होंने हस्ताक्षर करके माना है) अशोक जी के नाम पर खुद को बड़ा साबित करने के लिए इतना बेचैन है कि इसने एक फिक्शन लिख दिया औऱ अपने शब्द अशोक जी के नाम से प्रकाशित करवा दिए हैं... सुनो मिस्टर चिरौंजी लाल... अशोक जी ऐसा कह ही नहीं सकते कि काम करने का मन होता है... ये मैं नहीं अपने अलावा दुनिया में किसी से भी पूछ लीजिए... और जो तथाकथित उनकी भाषा आपने लिखी है न उससे बाज़ आइए वरना पिटेंगे... आप अशोक जी को नहीं जानते थे... सिर्फ एक दफ्तर में काम करने से किसी को जानने का दावा मत कीजिए... मैं तुम्हारे दफ्तर में काम नहीं करता हूं लेकिन तुम्हें जानता हूं... तो अशोक जी के लिए ऐसी बात लिखना पाप नहीं गुनाह है... क्योंकि चिरौंजी लाल तुम पाप पुण्य से आगे निकल चुके हो... सुनो चिरौंजी लाल... अशोक जी नाइट शिफ्ट से खुश नहीं परेशान थे... अगर उन्होंने तुमसे ये बात नहीं कही तो सिर्फ इस लिए क्योंकि तुम इसमें भी कोई राजनैतिक एंगल ढूंढ कर उन्हें परेशान करते... औऱ सुनलो चिरौंजी वो कभी किसी से (और खास कर तुम जैसे कमीने आदमी से) ये नहीं कह सकते कि आप एंकरिंग करदो मज़ा आ जाएगा क्योंकि तुम्हारी एंकरिंग से कभी किसी को कहीं भी मज़ा नहीं आता... चाहे अपने डेस्क में पूछ लो... पीसीआर में... एमसीआर में... या एक-आधे दर्शक से... और वो तुम्हें फोन करके ये कहेंगे कि सारे ग्राफिक्स लोड करा दिए हैं... दुनिया का कोई आदमी ये कहदे की ये अशोक जी की भाषा है तो सवा रुपय हार जाउंगा...(क्योंकि तुम्हारी औकात इससे ज़्यादा नहीं है)... तुमने बहुत कुछ ऐसा लिखा है जिसके बाद तुम्हें मारने औऱ सिर्फ मारते रहने का मन हो रहा है... लेकिन बात अशोक जी की है तो उनके शब्दों में कह रहा हूं... " जाने दे न यार... अपन को काम से मतलब है...टेंशन मत ले यार..." उनसे उम्र... पद और गुणों में बहुत छोटा हूं... तो उनके इस शब्द यार में छोटे भाई का प्यार झलका... औऱ यही प्यार है जिसकी वजह से सिर्फ तुम्हें मारते रहने का मन कर रहा है....(ईमेल)
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abhar.........