सुदूर उत्तर पूर्व राज्य मिजोरम के एक छोटे से समुदाय ने एक मिसाल कायम कर यह सिद्ध कर दिया है कि मानव एकता, संकल्प और अथक प्रयास से क्या कुछ नहीं किया जा सकता। भले ही यह मामला केवल एक मुट्ठीभर चावल से खाद्य बैंक बनाने का ही क्यों न हो। इस पहल की शुरुआत वैसे तो ब्रिटिश शासनकाल में शुरू की गई थी, लेकिन अपने सकारात्मक प्रभाव और लोकप्रियता के कारण आज मिजोरम में इसे सामुदायिक खाद्य बैंक के अभियान का नाम दिया गया है।

संयुक्त राष्ट्र नशा और अपराध कार्यालय के इस अभियान से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसके इतिहास की जानकारी देते हुए बताया बात वर्ष 1914 की है, जब राज्य में महिलाओं के एक समूह ने चर्च की सामाजिक सेवा में चंदा देने की अपनी असमर्थता को दूर करने के लिए एक अनूठी सूझबूझ दिखाई और अपने समूह के सभी सदस्यों से एक-एक मुट्ठी चावल एकत्र करना शुरू कर दिया।

इस प्रकार से जो चावल एकत्र हुआ, उसे स्थानीय बाजार में बेच दिया गया और जो कमाई हुई उसे चर्च में दान कर दिया। वर्ष 1914 में इस प्रकार से एकत्र किए गए चावलों को बेचकर केवल 80 रुपए इकट्ठा हुए थे और उसके 89 साल के बाद वर्ष 2003 के दौरान इसी प्रकार से एकत्र किए गए चावलों को बेचने पर चार लाख रुपए मिले।

अधिकारी ने बताया इस अभियान की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि आज मिजोरम के सभी परिवारों में से करीबन 86 प्रतिशत लोग इस अभियान में भाग ले रहे हैं और इसे कामयाब और यादगार बनाने में लगे हुए हैं। आज हर परिवार के पास एक दान पात्र है, जिसमें एक-एक मुट्ठी चावल एकत्र किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र नशा और अपराध कार्यालय ने इस अभियान में सामुदायिक भागीदारी से प्रभावित होकर सप्ताह में एक बार मुट्ठी भर चावल एकत्र करने की योजना बनाई और इस चावल की बिक्री से जमा की गई धनराशि से नशीली दवाओं के सेवन की आदी महिलाओं की सहायता की जाएगी।

यह कार्यक्रम मिजोरम के अजवाल, कोलासिन और चंफाई जिलों में संयुक्त राष्ट्र नशा और अपराध कार्यालय की क्षमता निर्माण और चेतना की समन्वित एचआईवी एड्स अनुक्रिया की परियोजना है, जो आज शहरी और देहाती दोनों इलाकों में चलाई जा रही है।

इस योजना के विस्तार कार्यक्रम के तहत अब तक 279 युवा महिलाओं को इस तरह से प्रशिक्षित किया गया है कि वे आगे चलकर लोगों को प्रशिक्षित कर सकें और सामुदायिक खाद्य बैंक के बारे में चेतना का प्रसार कर सकें। इसके परिणामस्वरूप 70 गाँवों से 147 क्विंटल चावल एकत्र किया गया और इसे बेचकर सभी कार्यकर्ताओं से मिलाकर कुल दो लाख रुपए की राशि जमा की गई। यह पूरी धनराशि अकाल के दौरान राहत का कार्य चलाने के लिए मिजोरम सरकार को भेंट की गई।

1 Comment:

  1. सुबोध said...
    बेहतरीन आर्टिकल शालिनी जी...खासा मोटिवेशनल है...ऐसे आर्टिकल प्रेरणा देते हैं...ये बताते हैं कि हम कुछ भी कर सकते हैं...मुट्ठी मुट्ठी से ही घड़ा भरता है ग्रेट...मेरी बधाई स्वीकार करें

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