सफर


कुछ सोच... कुछ इरादे... लिए निकल पड़े..

पड़ाव आते गये ... हम बढ़ते गये..

सफर में रोज़ कुछ नया सीखते गये...

पड़ाव पड़ते गये हम बड़ते गये...

हवा बारिश सब चलते रहे.. हम भी बढ़ते गये....

कभी थक गए तो आसमा की आगोश में सुसता लिए..

पड़ाव पड़ते गए..हम बढ़ते गए...

और ये सफर चलता रहा...अब थकान जरूर होने लगी है...

लेकिन मजिल अभी दूर है..और अभी बहुत चलना है...

पड़ाव पड़ते गए हम बढ़ते गए..

3 Comments:

  1. Vipin Behari Goyal said...
    सफर में रोज़ कुछ नया सीखते गये..

    अच्छा ज़ज्बा है ...सुंदर कविता
    संजय भास्‍कर said...
    kuch sochkuch irade
    wah
    विनोद कुमार पांडेय said...
    बस चलना ही जिंदगी है..चलते चलते ही मंज़िल मिलती है..बढ़िया रचना..बधाई

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