भारत में त्योहारों की इतनी समृद्घ परंपरा है कि एक धर्म के त्योहार को दूसरे धर्म के लोग भी खुशी-खुशी मनाते हैं, लेकिन दीवाली जैन और सिख धर्म में और भी कुछ परंपराओ के चलते बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। आइये जानते हैं इससे जुड़े कुछ अहम तथ्य...
जैन धर्म में दीवाली - जैन धर्म में दीवाली को बड़ा महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी को 527 बीसी में दीवाली के दिन ही मोक्ष प्राप्त हुआ था। इसके अलावा महावीर स्वामी के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को भी इसी दिन कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जैन ग्रंथों के मुताबिक महावीर स्वामी ने दीवाली से पहली रात को आधी रात के वक्त आखिरी बार उपदेश दिया था। भगवान द्वारा दिए गए इस आखिरी उपदेश को 'उत्तराध्यान सूत्र' के नाम से जाना जाता है। उस वक्त वहां मौजूद लोगों ने भगवान को मोक्ष होने की खुशी में रोशनी की और खुशियां मनाई। इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने निर्णय लिया कि महावीर स्वामी के ज्ञान को यहां जल रहे दीपकों के प्रकाश की तरह लोगों में फैलाया जाएगा। बस तभी से इस पर्व का नाम दीपावली या दीवाली पड़ गया। दीवाली को जैन धर्म में पर्यूषण पर्व के बाद सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। जैन धर्म में दीवाली को विशेष रूप से त्याग और तपस्या के पर्व के रूप में मनाया जाता है। जैन धर्म के अनुयायी इस त्योहार को तीन दिनों तक एंजॉय किया जाता है। इन दिनों लोग भगवान महावीर के त्याग-तपस्या को याद करके उनके जैसा बनने की कामना करते हैं और उनके आखिरी उपदेश 'उत्तराध्यायन सूत्र' का पाठ करते हैं। खास दीवाली वाले दिन सुबह-सुबह सभी जैन मंदिरों में भगवान महावीर की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। भगवान के मोक्ष जाने की खुशी में सभी लोग अपने घरों और दुकानों को विभिन्न तरह लाइटों से सजाते हैं।
सिख धर्म में दीवाली - दीवाली वाले दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी को मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्ति मिली थी। मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु हरगोविंद सिंह जी की बढ़ती शक्ति से घबरा कर उन्हें और उनके 52 साथियों को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया हुआ था। देश भर के लोगों द्वारा हरगोविंद सिंह जी को छोड़ने की अपील पर जहांगीर ने सन् 1619 ईसवीं में गुरु को दीवाली वाले दिन मुक्त किया था। कैद से मुक्त होते ही गुरु अमृतसर पहुंचे और वहां विशेष प्रार्थना का आयोजन किया गया। गुरु की माता ने सभी लोगों उनके रिहा होने की खुशी में मिठाई बांटी और चारों ओर दीप जलाए गए। इसी वजह से सिख धर्म में दीवाली को 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा अमृतसर के प्रसिद्घ स्वर्ण मंदिर की नींव सन् 1577 में दीवाली के दिन ही रखी गई थी। सिख धर्म में दीवाली के त्योहार को तीन दिन तक एंजॉय किया जाता है। दीवाली के दिन में अमृतसर में विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। इस दिन लोग सुबह-सुबह पवित्र सरोवर में डुबकी लगाते हैं और स्वर्ण मंदिर के दर्शन करते हैं।

5 Comments:

  1. विनोद कुमार पांडेय said...
    Gud one..
    badhiya jaankari mili padh kar..
    Thank You!!
    Batangad said...
    राम की राणव की विजय के बाद अयोध्या दीपों से इस तरह सजाया गया कि दीवाली हो गई। इसे भी जोड़ दीजिए
    श्यामल सुमन said...
    आपके आलेाख को पढ़कर कुछ नयी जानकारियाँ मिलीं शालिनी जी।
    सुबोध said...
    यही तो है हमारी सांस्कृतिक विरासत
    Awadhesh Pandey said...
    अच्छी जानकारी. छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी की जगह गुरु हरगोंविद साहब जी है. सिंह नाम गुरु गोविंद सिंह जी से प्रारंभ हुआ.

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