कल हमने बात की थी..अपने घर के सपने को अपना करने की...और आज हम आपको बताएंगे कैसे आप लोन से अपना सपना आसानी से पूरा कर सकते है....तो आईये जानते है.... इसका क्या प्रोसेस है...

1-एप्लिकेशन भरना - जी हां सबसे पहले जरूरी डॉक्यूमंट्स के साथ ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा किया जाता है। अब जिन जरूरी कागजात की जरूरत पड़ती है....इसमें आईये ये भी जान लेते है...
आइडेंटिटी प्रूफ : वोटर आईडी, पैन कार्ड, पासपोर्ट, फोटो क्रेडिट कार्ड आदि में से कोई एक।
रेजिडेंस प्रूफ : राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, रेंट अग्रीमंट।
इनकम प्रूफ : अगर अपना काम है तो इनकम टैक्स रिटर्न की पिछले तीन साल की कॉपी, अगर नौकरी करते हैं तो फॉर्म 16 और पिछले तीन महीने की सैलरी स्लिप, पिछले छह महीने की बैंक स्टेटमंट।
एम्प्लॉयमंट डीटेल : अगर नौकरी करते हैं और आपकी कंपनी जानी-मानी नहीं है तो कंपनी का लेटर।
प्रोसेसिंग फीस : ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के वक्त बैंक कस्टमर से प्रोसेसिंग फीस भी चार्ज करता है। यह अमूमन लोन की कुल रकम का आधे से 1 फीसदी होता है। कुछ बैंक प्रोसेसिंग फीस नहीं भी लेते हैं।
बात पते की : कुछ बैंक प्रोसेसिंग फीस को लेकर फ्लेक्सिबल होते हैं, इसलिए इस पर मोलभाव करके फीस को कम कराया जा सकता है। लोन अप्लाई करते वक्त ज्यादा से ज्यादा प्रूफ पेश करें। इससे आपका केस स्ट्रॉन्ग होता है।
2. पर्सनल वेरिफिकेशन
ऐप्लिकेशन जमा करने के एक या दो दिन बाद बैंक आपके द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को वेरिफाइ करता है। कस्टमर की इनकम, अड्रेस, आइडेंटिटी आदि जांचने का काम किया जाता है।
बात पते की : इस प्रॉसेस में बैंक कई बार कॉल करके आपका वेरिफिकेशन कर सकता है। इसलिए इस प्रोसेस को पूरा करने के लिए थोड़ा वक्त निकालकर रखें और बार-बार कॉल आने पर परेशान नहीं हो।
3. हरी झंडी
आपके द्वारा दी गई जानकारी और उसके वेरिफिकेशन से अगर बैंक संतुष्ट है तो वह आपके लोन को हरी झंडी दिखा देगा, नहीं तो उसे रिजेक्ट कर देगा। वैसे अगर ऐप्लिकेशन रिजेक्ट की जा रही है तो बैंक आमतौर पर बैंक इसकी कोई वजह नहीं बताते। कस्टमर की रीपेमंट कपैसिटी का आकलन करके यह भी तय कर लिया जाता है कि उसे कितना अमाउंट सैंक्शन होगा।
4. ऑफर लेटर
इसके बाद बैंक तमाम सूचनाओं के साथ कस्टमर को ऑफर लेटर देता है, जिसकी एक कॉपी को साइन करके कस्टमर बैंक को लौटाता है।
बात पते की : ऑफर लेटर में दी गई लोन अमाउंट, अवधि और ब्याज दर को चेक कर लें कि क्या वह वही है जो आपके साथ तय की गई थी। ब्याज की दर पर कुछ मोलभाव किया जा सकता है।
5. प्रॉपर्टी वेरिफिकेशन
इसके बाद बैंक आपकी प्रॉपर्टी की कानूनी वैधता को चेक करता है। अपने लीगल डिपार्टमंट की मदद से बैंक प्रॉपर्टी के सभी ओरिजनल डॉक्यूमंट्स को वेरिफाई करके यह सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी हर तरीके से कानूनी है। इसके बाद बैंक अपने एक्सपर्ट्स को साइट पर भेजकर भी प्रॉपर्टी का वेरिफिकेशन कराता है और उसके बाद वैल्यूअर प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करता है।
बात पते की : यह महत्वपूर्ण पॉइंट है। हर कस्टमर को कराना चाहिए। कई बार बैंक लीगल वेरिफिकेशन के लिए कस्टमर से चार्ज करते हैं। इसके लिए मोलभाव कर सकते हैं। अगर लीगल वेरिफिकेशन के बाद बैंक लोन ओके कर देता है तो कस्टमर को खुश हो जाना चाहिए, क्योंकि इसका मतलब है कि उसके द्वारा ली जा रही प्रॉपर्टी कानूनी रूप से पूरी तरह सेफ है। उसमें कोई धोखा नहीं है।
6. अग्रीमंट साइन
इसके बाद लोन अग्रीमंट साइन हो जाता है और कस्टमर के नाम पर प्रॉपर्टी के ट्रांसफर होने के ओरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं। इसके बाद बैंक इस बात के सबूत मांगता है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लोन के अलावा जो रकम आपको देनी है, वह आपने पे कर दी है। बैंक कस्टमर से 36 पोस्ट-डेटेड चेक भी जमा कराता है जिनसे रीपेमंट होता रहे।
बात पते की : ध्यान रखें कि लोन अमाउंट का जो चेक बैंक इश्यू करेगा, वह प्रॉपर्टी बेचने वाले के नाम होगा, कस्टमर के नाम नहीं। ज्यादातर बैंक उसी दिन से ब्याज लेना शुरू कर देते हैं, जिस दिन चेक इश्यू होता है। आपको चेक कब सौंपा गया, इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए जिस दिन चेक इश्यू हो कोशिश करनी चाहिए कि उसी उसे बैंक से ले लिया जाए। प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं, इसलिए इन कागजात की फोटोस्टेट कॉपी अपने पास जरूर रख लें। कई बार बैंक प्रॉपर्टी के कागजात खो देते हैं। ऐसे में बैंक यह कह सकता है कि उसके पास कागज जमा ही नहीं कराए गए। इसलिए जिस वक्त आप प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात जमा कराएं तो बैंक से उसका सटिर्फिकेट भी ले लें।
7. बैंक से चेक आना
अगर प्रॉपर्टी रहने के लिए तैयार है तो लोन का भुगतान एक बार में ही हो जाता है। लेकिन अगर मकान बन रहा हो तो लोन अमाउंट का भुगतान कई हिस्सों में होता है। अगर भुगतान कई हिस्सों में होना है तो बैंक पहले हिस्से के भुगतान के बाद तुरंत ईएमआई शुरू नहीं करता। ईएमआई तब शुरू होती है, जब पूरे अमाउंट का भुगतान हो जाता है। ऐसे में बैंक भुगतान की गई रकम पर तब तक साधारण ब्याज चार्ज करता है, जब तक पूरी रकम का डिस्बर्समंट नहीं हो जाता। इसे प्री-ईएमआई कहा जाता है। इसके लिए बैंक आमतौर पर छह पोस्टडेटेड चेक लेते हैं।
बात पते की : प्रीईएमआई समय से अदा करना सुनिश्चित करें, नहीं तो बैंक लेट फीस चार्ज कर सकता है। किस्त की अदायगी बिल्डर को करने के फौरन बाद उससे ली गई रसीद को बैंक में जमा कराएं।
फिक्स्ड रेट या फ्लोटिंग?
फिक्सड रेट: फिक्स्ड रेट पर लोन लेने से कस्टमर को पूरी अवधि के दौरान बराबर ईएमआई देनी होती है। अगर एक्सपर्ट्स आने वाले समय में ब्याज में बढ़ोतरी की संभावना जाहिर कर रहे हैं तो फिक्स्ड रेट पर लोन लेना ठीक है।
फायदे : इस पर बाजार में हो रहे उतार-चढ़ाव और घटती-बढ़ती ब्याज दरों का कोई असर नहीं होता। हमेशा के लिए एक-सी ईएमआई फिक्स हो जाती है। सुरक्षा का भाव रहता है।
नुकसान : यह फ्लोटिंग रेट के मुकाबले 1 से 2.5 फीसदी ज्यादा होती है। अगर कभी ब्याज दरों में गिरावट आ जाए तो भी कस्टमर की ईएमआई में कमी नहीं होती। कई बार फिक्स्ड रेट पूरी अवधि के लिए न होकर सिर्फ कुछ सालों के लिए होता है। कुछ साल बाद इसमें बढ़ोतरी कर दी जाती है। इस पॉइंट को बैंक से साफ कर लें।
फ्लोटिंग रेट: फ्लोटिंग रेट होम लोन एक बेस रेट और फ्लोटिंग एलिमंट का मिक्सचर होते हैं। अगर बेस रेट में अंतर आएगा तो फ्लोटिंग रेट में भी अंतर आ जाएगा। लोन की अवधि के दौरान यह घटता-बढ़ता रहता है।
फायदे : फिक्स्ड रेट के मुकाबले अमूमन 1 से ढाई फीसदी कम होता है यानी पैसे की सेविंग होती है। बढ़ते-बढ़ते कभी-कभी यह फिक्स्ड रेट से ऊपर भी निकल सकता है, लेकिन ऐसा कुछ समय के लिए ही होता है। कुछ समय बाद यह रेट फिर से फिक्स्ड रेट से नीचे आ जाता है।
नुकसान : ईएमआई में बदलाव होता रहता है, जिसके चलते बजटिंग में दिक्कत होती है।
बात पते की : होम लोन लेने वाले तकरीबन 90 फीसदी लोग फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लेते हैं, फिर भी बजटिंग सुरक्षा और सरटेनिटी अगर आपकी प्रायॉरिटी हैं तो फिक्स्ड रेट चुन सकते हैं।
कैसे चुनें बैंक लोन किस बैंक से लेना है, इसका फैसला करते वक्त इन पॉइंट्स को ध्यान में रखें
1. ब्याज की दर कम-से-कम हो।
2. बैंक द्वारा लिया जाने वाला प्रॉसेसिंग चार्ज कम-से-कम हो।
3. अगर समय से पहले लोन की रकम का पूरा भुगतान कर रहे हैं तो बैंक कोई पेनल्टी न वसूलता हो। 4. कोई और छिपे हुए चार्ज न हों।
तो ये रही इतनी जानकारी ...अब इस लोन का रीपेमंट आपको कैसे करना है.....इस होम लोन के टैक्स बेनिफिटआपको क्या मिल सकते है...हम आपको कल बताएंगे...तब तक थोड़ा इंतज़ार...
एक्सर्पट्स पैनल- सीए सुभाष लखोटिया, सीए सत्येंद्र जैन

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