जिदंगी


क्या कहूं जिदंगी भी क्या चीज़ होती है...

पल में खूबसुरत तो पल में बदरंग होती है..

क्या कहूं जिदंगी भी क्या चीज़ होती है..

कभी मासुम तो कभी होश उड़ा देती है..

क्या कहूं कि जिदंगी भी क्या चीज़ होती है..

कभी बहुत कुछ दे देती है...तो कभी सब कुछ ले लेती है...

क्या कहूं जिदगी भी क्या चीज़ होती है..

5 Comments:

  1. निर्मला कपिला said...
    जीते रहे मगर ज़िन्दगी को जाना नहीं
    टेडे थे रास्ते जमे कदम ना रहे
    अच्छी रचना है बधाई
    ओम आर्य said...
    bilkul hi sahi kaha har kshan yahi to ghatit hoti hai jindgi me yahi .....our kya hoti hai jindgi bas yahi.....
    संजय भास्‍कर said...
    अच्छी रचना है
    शुभकामनायें

    Sanjay
    haryana
    Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...
    अच्छी रचना.
    लिखते रहें.
    satyendra Yadav said...
    tumhe bhi likhai ke keede ne kaat liya ??? achchha laga... aasha karta hoon ki iske zajar ka ilaj tum kaagaz kaala-rangeen karke yun hee kati rahogi...

    shubhkamnao sahit "akinchan"

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