ऑफिस का कॉम्पिटिशन, सुबह की जॉगिंग, थिएटर में पॉपकॉर्न टटोलती उंगलियां या फिर सोने के पहले सोचने जैसा कुछ, यही सब मिलकर बनाता है जिंदगी को। हमें इस जिंदगी से तमाम शिकायतें हैं, मगर उन शिकायतों की पूंछ में लिपटी आती हैं तमाम उम्मीदें और उन्हें पूरा करने के लिए जोश।
हमारे मकसद में एक तपिश है, जो मुश्किलों के पहाड़ को धीरे-धीरे ही सही, पिघलाने का माद्दा रखती है, बशर्ते हम ठंडे न पड़ जाएं। इसलिए जिस कोने में कभी आपकी सेहत, तो कभी आपकी जेब को बचाए रखने और बेहतर करने के नुस्खे सुझाए जाते हैं, उस पर हमने इस बार जिंदगी की हरारत से जुडे़ कुछ ख्यालों को जगह दी है। वजह सिर्फ इतनी कि जिंदगी को बांहों में भींचने के लिए हमें भी तो कुछ करना होगा। तो नए साल से पहले जिंदगी को नई नजर से निहारने की कोशिश कर रहे हैं सौरभ द्विवेदी :
खिल-खिल-खिल कर हंस दें
एक ही स्कूल, कॉलेज और दफ्तर में तमाम ऐसी शक्लें हैं, तमाम ऐसी आवाजें हैं, जो कभी हमें पसंद थीं। फिर एक दोपहर या शाम किसी बहस ने जंबो साइज हासिल कर लिया और हमारी मुस्कानों के बीच में इगो का सोख्ता आ गया, जिसने रिश्तों की सारी नमी को सोख लिया। कोई दोस्त, कोई कलीग या फिर कोई रिश्तेदार, जिसके साथ आपने कभी न कभी कुछ अच्छा वक्त जरूर बिताया है, अब उससे बात करने का, उसे देखने का दिल भी नहीं करता। तो कोशिश करें कि अच्छी यादों को बुरी यादों के ऊपर जीत हासिल हो। हम यह नहीं कहते कि ऐसी हर गलतफहमी या मनमुटाव को खत्म कर धर्मात्मा बन जाएं, मगर हां चुप्पी के कुछ सन्नाटों को एक हंसी के कहकहे के साथ खत्म किया जा सकता है। क्या पता आपकी हंसी फिर से नमी पैदा कर दे? और हां इन सबसे दूर हंसी की डेली डोज भी जरूरी है। आपसे किसी ने कभी तो कहा होगा, वेन यू स्माइल, यू डू वेल। सो डू वेल इन लाइफ।
हरी-भरी दुनिया पर टिकती हैं आंखें
ऑफिस है, काम है, घर की जिम्मेदारियां हैं, बीवी है, बच्चे हैं, एक फिक्स्ड रुटीन है। दोस्त हैं, दुश्मन हैं, सब कुछ है, मगर फिर भी कुछ है जो अधूरा-सा लगता है। शायद हमारे आसपास बदलती दुनिया के साथ हमारा रिश्ता बड़ा कामकाजी-सा हो गया है। तो फिर हम एक नए कुछ-कुछ बचपने-से-भरे एक्सपेरिमेंट पर हाथ आजमा सकते हैं। एक नन्हा-सा गमला, जिसमें हम खुद से इंतजाम कर भरेंगे, मिट्टी। मिट्टी भरते समय एक लंबी सांस ताकि नाक जो गीली मिट्टी की खुशबू भूल चुकी है, ताजादम हो जाए। इस सबके बाद अपनी पसंद का कोई एक पौधा। ये तुलसी भी हो सकता है और गुलाब भी। उस पौधे या कलम को गमले में रोप दें। थोड़ा-सा पानी, थोड़ी-सी धूप, इसका रखें ध्यान। और हां कुछ ही दिनों बाद वह पौधा, जो आपकी स्टडी टेबल वाली खिड़की या रोशनदान के नीचे वाली जगह पर सुस्ता रहा है, आपका ध्यान खींचने लगेगा। उसका बढ़ना, उसके जिस्म पर नई-नवेली पत्तियों का आना, उसकी तली यानी मिट्टी में भुरभुरापन पैदा होना, सब कुछ आपको अलहदा लगेगा। दरअसल, मन किसी को हमारे प्यार की हरारत पा बढ़ते देख खुश हो जाता है। तो जनाब देर किस बात की, एक गमला तलाशना शुरू करिए और हां याद रखिए, हमारे अपने भी ऐसी ही हरारत की उम्मीद रखते हैं।
कह दूं तुम्हें
ऑफिस में बॉस की नई टाई नोटिस करते हैं, मगर बीवी ने कान के बुंदे कब बदले, यह याद नहीं। स्टेशनरी खत्म हो गई, यह याद है, मगर बेटी के कलर ब्रश लाना रोज भूल जाते हैं। आपकी डेस्क कुछ ज्यादा साफ है, होटेल में वेटर ने वाकई अच्छी-सी मुस्कान के साथ सर्व किया या फिर उम्मीद के उलट ब्लूलाइन के कंडक्टर ने या फिर ऑटो वाले ने मुस्कराकर आपको चौंका दिया, हर बार जरूरत होती है झिझक या सुस्ती को कंधों से झटकर थैंक्यू बोलने की, कॉम्प्लिमेंट की खुराक देने की। हममें से हर कोई बदलाव को नोटिस करता है, अच्छी चीजों को अपने-अपने तईं याद रखता है, मगर फिर हम उन्हें बोलने से मुकर जाते हैं। लगता है क्या सोचेगा सामने वाला इस तरह से खुद को, खुद की चीजों को नोटिस किया जाते देखकर। सोचेगा, जरूर सोचेगा, मगर यकीन मानिए, सच्चे दिल से की गई सच्ची तारीफ उसे कुछ अच्छा ही सोचने पर मजबूर करेगी। तो फिर कह दीजिए दिल की बात, अपनों से। कुछ अपने ही अंदाज में। यह अंदाज मिसिंग यू का एसएमएस भी हो सकता है या फिर किसी पुराने दोस्त को फोन कॉल या ईमेल। प्यार भरी थपकी या फिर आंखों में ढेर सारी मीठी शरारत घोलकर बोला गया थैंक्यू भी जादू कर सकता है। तो नए साल को एक्सप्रेशन का साल बनाइए और कह ही दीजिए।
बोल के लब आजाद हैं तेरे
सड़क में गड्ढे क्यों हैं, ऑफिस में लोग दूसरों की सुविधा का ध्यान रखे बिना घंटों गॉसिप क्यों करते हैं, एक सुबह अगर हम खुद को आईने में देखें और बूढ़ा पाएं, तो ऐसे तमाम सवाल या ख्याल हमें घेरे रहते हैं और उनके बारे में सोचकर हम कसमसाते भी खूब हैं, मगर ऐसी कसमसाहट का क्या फायदा। वो कहते हैं न कि जिस गुस्से से कोई गुल न खिले, उसके होने का क्या फायदा। तो अपने आसपास की बातों के लिए, अपनी यादों के लिए या किसी और की कहानी को दुनिया को सुनाने के लिए ही सही बोलिए और अपने अंदर की आवाज को बाहर आने दीजिए। इंटरनेट की दुनिया है, चंद मिनटों की मेहनत से अपना ब्लॉग तैयार किया जा सकता है। किसी वेब पोर्टल के लिए कंटेंट तैयार किया जा सकता है। चंद हजार में आपकी अपनी वेबसाइट। हर मीडिया एजेंसी को तलाश है ऐसे ही लोगों की जो कुछ बोलना चाहते हैं, क्योंकि जमाना सिटिजन जर्नलिस्ट का है। मोबाइल पर बोलते हैं, दिन में आधा घंटे एसएमएस टाइप करते हैं।
तो ऐसा नहीं है कि इंडिया बोलता नहीं है, मगर इस साल ये बोल औरों तक मुकम्मल ढंग से पहुंचें, इसका इंतजाम करें। आप रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशन में बोलें, किटी पार्टी के बीच में बोलें, पैरंट्स मीटिंग में बोलें, मगर जब भी बोलें, दिल से बोलें। जिन चीजों को आपने महसूस किया है, उन्हें बोलें। और हां, अगर सबके साथ अपने ख्याल साझा करने से परहेज है, तो एक दिन स्टेशनरी की दुकान के सामने रुक जाएं और अपने लिए चमड़े के जिल्द या चिड़िया के कवर वाली डायरी या कॉपी खरीद लें और इसी पर लिखें। पहला हर्फ लिखने से पहले 15 मिनट से कम नहीं लगेंगे, मगर एक बार सिलसिला निकल पड़ा तो फिर थमाए नहीं थमेगा। तो फिर बोल क्योंकि जबां अब तक तेरी है।
वॉक पर चलें क्या
सर्दियों की शाम और गर्मियों की सुबह नेचर ने उन लोगों के लिए बुनी है, जो सपनों को चुनना जानते हैं। अच्छा गोल-गोल बात नहीं, पर बताइए आखिरी बार अपनों के साथ या खुद अपने साथ वॉक पर कब गए थे? यूं ही शरीर को कुछ सुस्त-सा छोड़कर, कदमों को खुद अपनी थाप पर डोलते देखने का मन नहीं करता? एक जर्मन थिंकर था नीत्शे। कहता था कि दुनिया के सारे महान ख्याल टहलते हुए ही आते हैं। तो फिर टहलिए। कोई वक्त तय नहीं, कोई रूट तय नहीं। बस यूं ही खाना खाने के बाद या शाम की चाय से पहले टहला जाए। आसपास की चीजों को कुछ ठहरकर देखा जाए।
हो सकता है कि एक दुनिया समानांतर बसी हो, जिसे टाइम से ऑफिस पहुंचने या फिर जल्दी घर पहुंचने के फेर में कभी देखा ही न हो। खैर दुनिया की छोड़िए और अपने भीतर की दुनिया का ही हाल जान लीजिए। पार्क में या फिर कम ट्रैफिक वाली सड़क के फुटपाथ पर या फिर दिन के शोर से दूर किसी चुप से मैदान में टहलिए और दिमाग को डोलने दीजिए, जहां दिल करे। यकीन मानिए कुछ बेहतर महसूस करेंगे। तो फिर सोचना कैसा, वॉक पर चलते हैं। धुंध के बीच अपने ख्यालों के साथ पार्टनरशिप करते हैं और फिर घर में घुसने से पहले सिर्फ अपने कानों को सुनाते हुए कहते हैं - हेलो जिंदगी।
छोटी चीजों का सुख
कार कब ले पाऊंगा, अपने घर का क्या होगा, मशीन है मगर पूरी तरह से ऑटोमैटिक नहीं। बीवी से बनती नहीं, बॉस समझता नहीं और बच्चे, अजी कुछ पूछिए मत, कम्बख्त पढ़ते ही नहीं। तो बड़ी शिकायतें हैं हमें जिंदगी से, अपने आसपास से और उनसे पार पाने के लिए हम किसी बड़े सुख का इंतजार करते हैं। कुछ भारी-भरकम सा, बहुत अच्छा-सा होगा। सुबहों का रंग और शामों की खुशबू बदल जाएगी। मगर इस बड़ी खुशी के इंतजार में हम छोटी खुशियों को फुटपाथ किनारे ठिठुरता छोड़ देते हैं, घर लाने के बजाय। संडे सुबह की खूब अदरक वाली कड़क चाय पीते हुए बतियाना या फिर रात गए रजाई के ऊपर ही मूंगफली से मुठभेड़ करना। सब भूल गए, वक्त की आपाधापी में। सच बताएं, भूले नहीं, मगर अब महसूस नहीं करते। दाल अब भी खाते हैं, मगर उसमें ताजा धनिया पत्ती पड़ी है या फिर लहसुन, पता ही नहीं चलता। मां या पत्नी या बेटी ने नई ड्रेस पहनी और बहुत प्यारी लग रही है, मगर ठहरकर उनको देखने का सुख नहीं लपकते। पसंदीदा गाने के बोल खोजने की कौन कहे, अब तो गाने भी पूरा वक्त देकर नहीं सुने जाते। ड्राइव करते या काम करते हुए बैकग्राउंड के शोर की तरह गाने सुने जाते हैं। किताबें सिर्फ बीते बरसों या अधूरे सिलेबस की याद दिलाती हैं। मगर इन्हीं में छोटे-छोटे सुख छिपे हैं। इन्हीं से जुड़ी चीजों को करने में कभी बहुत लुत्फ आता था। हिम्मत न हारिए, बिसारिए न राम, सो अपने राम को आज से ही काम पर लगा दीजिए। कभी स्टोररूम से पुरानी मैगजीन निकालकर पलटिए या फिर एक दिन कॉपी का पिछला पन्ना फाड़कर किसी दूर के रिश्ते की बुआ या मास्टर बन चुके यार को खत लिख डालिए। हो सकता है कि दसियों बरस पहले बनाई गई अड्रेस बुक ढूंढने में वक्त लगे, मगर इस तरह से वक्त खर्चने का अलग मजा है।
इन छोटी चीजों के सुख में आदतों को सहलाना शामिल है तो सभ्यता को ठेंगा दिखाते हुए हाथ से चावल खाना भी। बस ऐसा कुछ जो अच्छा लगे, जिंदगी के पूरेपन का एहसास कराए।
खुद की मुहब्बत में पड़ गए
और अब इस बार की आखिरी बात। हमें सब प्यार करें, इससे पहले जरूरी है कि खुद हम खुद से प्यार करें। और खुद से प्यार करना उतना ही मुश्किल है, जितना बीवी को रिझाना या गर्लफ्रेंड से पहली बार दिल की बात कहना। खुद से प्यार तभी कर पाएंगे, जब खुद के सपनों के साथ ईमानदारी से पेश आएंगे। अपनी क्षमताओं के साथ इंसाफ करेंगे और अपने लिए सबसे ज्यादा सख्त बनेंगे। मगर जनाब सवाल सिर्फ सख्ती का नहीं है। खुद से प्यार करने के लिए खुद को छूना, महसूस करना और देखना भी जरूरी है। कभी सुबह ब्रश करते या शाम को कंघी करते हुए अचानक शीशे पर नजर ठहर जाती है और हम खुद की शक्ल को एक अलग ही ढंग से देखने लगते हैं। यह मैं हूं, ऐसा दिखता हूं, मेरी आवाज ऐसी है और दुनिया मुझे और मेरे काम को इस नाम के साथ जोड़ती है। या फिर ऐसा ही कोई पहली नजर में अजीब-सा लगता ख्याल। तो फिर जल्दी से शीशे के सामने से हटने के बजाय खुद को नजर भरकर देख लें। अपनी जरूरतों का, अपनी हेल्थ का और अपने स्वादों का ख्याल रखें, मगर ऐसे कि खुद से प्यार हो जाए, खुद पर दुलार बढ़ जाए।
नए साल में क्या कर सकते हैं, यह तो आप ही बेहतर जानते हैं। चलते-चलते सिर्फ इतना ही कि जेनरेशन एक्स, वाई, जेड के लोग अपनों से छोटों और बड़ों की बातों को हमेशा खारिज करने के बजाय समझने की कोशिश जरूर करें। और हां, नए दौर के लोग खासतौर पर अपने विचारों को कुछ वक्त के लिए ही सही, साइड पॉकेट में रखकर बुजुर्गों की सुन लें, क्योंकि जो उनके पास है वह कहीं नहीं। किसी कवि की इन पंक्तियों के साथ आप सबको हैपी जिंदगी का नया साल मुबारक हो।
संभावनाओं से लबालब भरा हुआ ये साल यदि बस में होता मेरे तो बांध देता इसे मां के पल्लू से और फिर रोज मांगते उससे एक खनकता हुआ दिन
हमारे मकसद में एक तपिश है, जो मुश्किलों के पहाड़ को धीरे-धीरे ही सही, पिघलाने का माद्दा रखती है, बशर्ते हम ठंडे न पड़ जाएं। इसलिए जिस कोने में कभी आपकी सेहत, तो कभी आपकी जेब को बचाए रखने और बेहतर करने के नुस्खे सुझाए जाते हैं, उस पर हमने इस बार जिंदगी की हरारत से जुडे़ कुछ ख्यालों को जगह दी है। वजह सिर्फ इतनी कि जिंदगी को बांहों में भींचने के लिए हमें भी तो कुछ करना होगा। तो नए साल से पहले जिंदगी को नई नजर से निहारने की कोशिश कर रहे हैं सौरभ द्विवेदी :
खिल-खिल-खिल कर हंस दें
एक ही स्कूल, कॉलेज और दफ्तर में तमाम ऐसी शक्लें हैं, तमाम ऐसी आवाजें हैं, जो कभी हमें पसंद थीं। फिर एक दोपहर या शाम किसी बहस ने जंबो साइज हासिल कर लिया और हमारी मुस्कानों के बीच में इगो का सोख्ता आ गया, जिसने रिश्तों की सारी नमी को सोख लिया। कोई दोस्त, कोई कलीग या फिर कोई रिश्तेदार, जिसके साथ आपने कभी न कभी कुछ अच्छा वक्त जरूर बिताया है, अब उससे बात करने का, उसे देखने का दिल भी नहीं करता। तो कोशिश करें कि अच्छी यादों को बुरी यादों के ऊपर जीत हासिल हो। हम यह नहीं कहते कि ऐसी हर गलतफहमी या मनमुटाव को खत्म कर धर्मात्मा बन जाएं, मगर हां चुप्पी के कुछ सन्नाटों को एक हंसी के कहकहे के साथ खत्म किया जा सकता है। क्या पता आपकी हंसी फिर से नमी पैदा कर दे? और हां इन सबसे दूर हंसी की डेली डोज भी जरूरी है। आपसे किसी ने कभी तो कहा होगा, वेन यू स्माइल, यू डू वेल। सो डू वेल इन लाइफ।
हरी-भरी दुनिया पर टिकती हैं आंखें
ऑफिस है, काम है, घर की जिम्मेदारियां हैं, बीवी है, बच्चे हैं, एक फिक्स्ड रुटीन है। दोस्त हैं, दुश्मन हैं, सब कुछ है, मगर फिर भी कुछ है जो अधूरा-सा लगता है। शायद हमारे आसपास बदलती दुनिया के साथ हमारा रिश्ता बड़ा कामकाजी-सा हो गया है। तो फिर हम एक नए कुछ-कुछ बचपने-से-भरे एक्सपेरिमेंट पर हाथ आजमा सकते हैं। एक नन्हा-सा गमला, जिसमें हम खुद से इंतजाम कर भरेंगे, मिट्टी। मिट्टी भरते समय एक लंबी सांस ताकि नाक जो गीली मिट्टी की खुशबू भूल चुकी है, ताजादम हो जाए। इस सबके बाद अपनी पसंद का कोई एक पौधा। ये तुलसी भी हो सकता है और गुलाब भी। उस पौधे या कलम को गमले में रोप दें। थोड़ा-सा पानी, थोड़ी-सी धूप, इसका रखें ध्यान। और हां कुछ ही दिनों बाद वह पौधा, जो आपकी स्टडी टेबल वाली खिड़की या रोशनदान के नीचे वाली जगह पर सुस्ता रहा है, आपका ध्यान खींचने लगेगा। उसका बढ़ना, उसके जिस्म पर नई-नवेली पत्तियों का आना, उसकी तली यानी मिट्टी में भुरभुरापन पैदा होना, सब कुछ आपको अलहदा लगेगा। दरअसल, मन किसी को हमारे प्यार की हरारत पा बढ़ते देख खुश हो जाता है। तो जनाब देर किस बात की, एक गमला तलाशना शुरू करिए और हां याद रखिए, हमारे अपने भी ऐसी ही हरारत की उम्मीद रखते हैं।
कह दूं तुम्हें
ऑफिस में बॉस की नई टाई नोटिस करते हैं, मगर बीवी ने कान के बुंदे कब बदले, यह याद नहीं। स्टेशनरी खत्म हो गई, यह याद है, मगर बेटी के कलर ब्रश लाना रोज भूल जाते हैं। आपकी डेस्क कुछ ज्यादा साफ है, होटेल में वेटर ने वाकई अच्छी-सी मुस्कान के साथ सर्व किया या फिर उम्मीद के उलट ब्लूलाइन के कंडक्टर ने या फिर ऑटो वाले ने मुस्कराकर आपको चौंका दिया, हर बार जरूरत होती है झिझक या सुस्ती को कंधों से झटकर थैंक्यू बोलने की, कॉम्प्लिमेंट की खुराक देने की। हममें से हर कोई बदलाव को नोटिस करता है, अच्छी चीजों को अपने-अपने तईं याद रखता है, मगर फिर हम उन्हें बोलने से मुकर जाते हैं। लगता है क्या सोचेगा सामने वाला इस तरह से खुद को, खुद की चीजों को नोटिस किया जाते देखकर। सोचेगा, जरूर सोचेगा, मगर यकीन मानिए, सच्चे दिल से की गई सच्ची तारीफ उसे कुछ अच्छा ही सोचने पर मजबूर करेगी। तो फिर कह दीजिए दिल की बात, अपनों से। कुछ अपने ही अंदाज में। यह अंदाज मिसिंग यू का एसएमएस भी हो सकता है या फिर किसी पुराने दोस्त को फोन कॉल या ईमेल। प्यार भरी थपकी या फिर आंखों में ढेर सारी मीठी शरारत घोलकर बोला गया थैंक्यू भी जादू कर सकता है। तो नए साल को एक्सप्रेशन का साल बनाइए और कह ही दीजिए।
बोल के लब आजाद हैं तेरे
सड़क में गड्ढे क्यों हैं, ऑफिस में लोग दूसरों की सुविधा का ध्यान रखे बिना घंटों गॉसिप क्यों करते हैं, एक सुबह अगर हम खुद को आईने में देखें और बूढ़ा पाएं, तो ऐसे तमाम सवाल या ख्याल हमें घेरे रहते हैं और उनके बारे में सोचकर हम कसमसाते भी खूब हैं, मगर ऐसी कसमसाहट का क्या फायदा। वो कहते हैं न कि जिस गुस्से से कोई गुल न खिले, उसके होने का क्या फायदा। तो अपने आसपास की बातों के लिए, अपनी यादों के लिए या किसी और की कहानी को दुनिया को सुनाने के लिए ही सही बोलिए और अपने अंदर की आवाज को बाहर आने दीजिए। इंटरनेट की दुनिया है, चंद मिनटों की मेहनत से अपना ब्लॉग तैयार किया जा सकता है। किसी वेब पोर्टल के लिए कंटेंट तैयार किया जा सकता है। चंद हजार में आपकी अपनी वेबसाइट। हर मीडिया एजेंसी को तलाश है ऐसे ही लोगों की जो कुछ बोलना चाहते हैं, क्योंकि जमाना सिटिजन जर्नलिस्ट का है। मोबाइल पर बोलते हैं, दिन में आधा घंटे एसएमएस टाइप करते हैं।
तो ऐसा नहीं है कि इंडिया बोलता नहीं है, मगर इस साल ये बोल औरों तक मुकम्मल ढंग से पहुंचें, इसका इंतजाम करें। आप रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशन में बोलें, किटी पार्टी के बीच में बोलें, पैरंट्स मीटिंग में बोलें, मगर जब भी बोलें, दिल से बोलें। जिन चीजों को आपने महसूस किया है, उन्हें बोलें। और हां, अगर सबके साथ अपने ख्याल साझा करने से परहेज है, तो एक दिन स्टेशनरी की दुकान के सामने रुक जाएं और अपने लिए चमड़े के जिल्द या चिड़िया के कवर वाली डायरी या कॉपी खरीद लें और इसी पर लिखें। पहला हर्फ लिखने से पहले 15 मिनट से कम नहीं लगेंगे, मगर एक बार सिलसिला निकल पड़ा तो फिर थमाए नहीं थमेगा। तो फिर बोल क्योंकि जबां अब तक तेरी है।
वॉक पर चलें क्या
सर्दियों की शाम और गर्मियों की सुबह नेचर ने उन लोगों के लिए बुनी है, जो सपनों को चुनना जानते हैं। अच्छा गोल-गोल बात नहीं, पर बताइए आखिरी बार अपनों के साथ या खुद अपने साथ वॉक पर कब गए थे? यूं ही शरीर को कुछ सुस्त-सा छोड़कर, कदमों को खुद अपनी थाप पर डोलते देखने का मन नहीं करता? एक जर्मन थिंकर था नीत्शे। कहता था कि दुनिया के सारे महान ख्याल टहलते हुए ही आते हैं। तो फिर टहलिए। कोई वक्त तय नहीं, कोई रूट तय नहीं। बस यूं ही खाना खाने के बाद या शाम की चाय से पहले टहला जाए। आसपास की चीजों को कुछ ठहरकर देखा जाए।
हो सकता है कि एक दुनिया समानांतर बसी हो, जिसे टाइम से ऑफिस पहुंचने या फिर जल्दी घर पहुंचने के फेर में कभी देखा ही न हो। खैर दुनिया की छोड़िए और अपने भीतर की दुनिया का ही हाल जान लीजिए। पार्क में या फिर कम ट्रैफिक वाली सड़क के फुटपाथ पर या फिर दिन के शोर से दूर किसी चुप से मैदान में टहलिए और दिमाग को डोलने दीजिए, जहां दिल करे। यकीन मानिए कुछ बेहतर महसूस करेंगे। तो फिर सोचना कैसा, वॉक पर चलते हैं। धुंध के बीच अपने ख्यालों के साथ पार्टनरशिप करते हैं और फिर घर में घुसने से पहले सिर्फ अपने कानों को सुनाते हुए कहते हैं - हेलो जिंदगी।
छोटी चीजों का सुख
कार कब ले पाऊंगा, अपने घर का क्या होगा, मशीन है मगर पूरी तरह से ऑटोमैटिक नहीं। बीवी से बनती नहीं, बॉस समझता नहीं और बच्चे, अजी कुछ पूछिए मत, कम्बख्त पढ़ते ही नहीं। तो बड़ी शिकायतें हैं हमें जिंदगी से, अपने आसपास से और उनसे पार पाने के लिए हम किसी बड़े सुख का इंतजार करते हैं। कुछ भारी-भरकम सा, बहुत अच्छा-सा होगा। सुबहों का रंग और शामों की खुशबू बदल जाएगी। मगर इस बड़ी खुशी के इंतजार में हम छोटी खुशियों को फुटपाथ किनारे ठिठुरता छोड़ देते हैं, घर लाने के बजाय। संडे सुबह की खूब अदरक वाली कड़क चाय पीते हुए बतियाना या फिर रात गए रजाई के ऊपर ही मूंगफली से मुठभेड़ करना। सब भूल गए, वक्त की आपाधापी में। सच बताएं, भूले नहीं, मगर अब महसूस नहीं करते। दाल अब भी खाते हैं, मगर उसमें ताजा धनिया पत्ती पड़ी है या फिर लहसुन, पता ही नहीं चलता। मां या पत्नी या बेटी ने नई ड्रेस पहनी और बहुत प्यारी लग रही है, मगर ठहरकर उनको देखने का सुख नहीं लपकते। पसंदीदा गाने के बोल खोजने की कौन कहे, अब तो गाने भी पूरा वक्त देकर नहीं सुने जाते। ड्राइव करते या काम करते हुए बैकग्राउंड के शोर की तरह गाने सुने जाते हैं। किताबें सिर्फ बीते बरसों या अधूरे सिलेबस की याद दिलाती हैं। मगर इन्हीं में छोटे-छोटे सुख छिपे हैं। इन्हीं से जुड़ी चीजों को करने में कभी बहुत लुत्फ आता था। हिम्मत न हारिए, बिसारिए न राम, सो अपने राम को आज से ही काम पर लगा दीजिए। कभी स्टोररूम से पुरानी मैगजीन निकालकर पलटिए या फिर एक दिन कॉपी का पिछला पन्ना फाड़कर किसी दूर के रिश्ते की बुआ या मास्टर बन चुके यार को खत लिख डालिए। हो सकता है कि दसियों बरस पहले बनाई गई अड्रेस बुक ढूंढने में वक्त लगे, मगर इस तरह से वक्त खर्चने का अलग मजा है।
इन छोटी चीजों के सुख में आदतों को सहलाना शामिल है तो सभ्यता को ठेंगा दिखाते हुए हाथ से चावल खाना भी। बस ऐसा कुछ जो अच्छा लगे, जिंदगी के पूरेपन का एहसास कराए।
खुद की मुहब्बत में पड़ गए
और अब इस बार की आखिरी बात। हमें सब प्यार करें, इससे पहले जरूरी है कि खुद हम खुद से प्यार करें। और खुद से प्यार करना उतना ही मुश्किल है, जितना बीवी को रिझाना या गर्लफ्रेंड से पहली बार दिल की बात कहना। खुद से प्यार तभी कर पाएंगे, जब खुद के सपनों के साथ ईमानदारी से पेश आएंगे। अपनी क्षमताओं के साथ इंसाफ करेंगे और अपने लिए सबसे ज्यादा सख्त बनेंगे। मगर जनाब सवाल सिर्फ सख्ती का नहीं है। खुद से प्यार करने के लिए खुद को छूना, महसूस करना और देखना भी जरूरी है। कभी सुबह ब्रश करते या शाम को कंघी करते हुए अचानक शीशे पर नजर ठहर जाती है और हम खुद की शक्ल को एक अलग ही ढंग से देखने लगते हैं। यह मैं हूं, ऐसा दिखता हूं, मेरी आवाज ऐसी है और दुनिया मुझे और मेरे काम को इस नाम के साथ जोड़ती है। या फिर ऐसा ही कोई पहली नजर में अजीब-सा लगता ख्याल। तो फिर जल्दी से शीशे के सामने से हटने के बजाय खुद को नजर भरकर देख लें। अपनी जरूरतों का, अपनी हेल्थ का और अपने स्वादों का ख्याल रखें, मगर ऐसे कि खुद से प्यार हो जाए, खुद पर दुलार बढ़ जाए।
नए साल में क्या कर सकते हैं, यह तो आप ही बेहतर जानते हैं। चलते-चलते सिर्फ इतना ही कि जेनरेशन एक्स, वाई, जेड के लोग अपनों से छोटों और बड़ों की बातों को हमेशा खारिज करने के बजाय समझने की कोशिश जरूर करें। और हां, नए दौर के लोग खासतौर पर अपने विचारों को कुछ वक्त के लिए ही सही, साइड पॉकेट में रखकर बुजुर्गों की सुन लें, क्योंकि जो उनके पास है वह कहीं नहीं। किसी कवि की इन पंक्तियों के साथ आप सबको हैपी जिंदगी का नया साल मुबारक हो।
संभावनाओं से लबालब भरा हुआ ये साल यदि बस में होता मेरे तो बांध देता इसे मां के पल्लू से और फिर रोज मांगते उससे एक खनकता हुआ दिन
आप अपनी गाड़ी की सही वक्त पर सर्विसिंग कराते हैं। हर संडे उसकी धुलाई करते, चमकाते हैं। लेकिन क्या आप अ पनी कार के टायरों का भी उतना ही ध्यान रखते हैं? इस हफ्ते ऑटो गाइड में टायर की एबीसी समझा रहे हैं शिवेंद्र सिंह चौहान
इंजन के बाद टायरों को कार का सबसे अहम हिस्सा माना जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि सड़क और गाड़ी के बीच का रिश्ता टायरों पर ही निर्भर होता है। कार का माइलेज, हैंडलिंग, बैलेंस और कंट्रोल जैसी कई चीजें काफी हद तक टायरों पर निर्भर होती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपनी कार के लिए सही टायरों का ही चुनाव करें।
टायर की कुंडली टायर की साइडवॉल पर एक कोड लिखा होता है। टायर के बारे में सारी जानकारी इसी कोड में होती है। मसलन, टायर पर लिखा है P205/65 R 16 95 S तो इसमें P का मतलब है पैसेंजर कार टायर। 205 टायर की चौड़ाई (मिमी में), 65 इसका आस्पेक्ट रेश्यो यानी टायर की चौड़ाई और ऊंचाई का अनुपात। R यानी रेडियल और 16 रिम का डायमीटर यानी व्यास बताता है। यहां 95 लोड इंडेक्स है, जो बताता है कि टायर अधिकतम कितना वजन उठा सकता है। लोड इंडेक्स की स्केल देखने से पता चलता है कि 96 रेटिंग का टायर 690 किलो वजन के लिए बना है। अंत में S यानी टायर की स्पीड रेटिंग। हर टायर के लिए स्पीड की मैक्सिमम लिमिट होती है। इसके लिए A1 से लेकर Y तक रेटिंग दी जाती है। A1 रेटिंग वाले टायर 5 किमी प्रति घंटा और Y रेटिंग वाले टायर 300 किमी प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार पर चल सकते हैं। इस रफ्तार से ज्यादा तेज चलाने पर टायर खराब हो सकता है।
किस्म-किस्म के टायर आमतौर पर टायर दो तरह के होते हैं - ट्यूब टायर और ट्यूबलेस टायर। ज्यादातर छोटी गाडि़यों में कार कंपनियां ट्यूब टायर लगाकर देती हैं। प्रीमियम कारों और छोटी कारों के टॉप-एंड मॉडल्स में ट्यूबलेस टायर ज्यादा दिखते हैं। ट्यूब टायर आमतौर पर ट्यूबलेस टायरों से कम कीमत के होते हैं लेकिन ट्यूब और टायर के बीच होने वाले फ्रिक्शन की वजह से ये टायर जल्दी गर्म होते हैं और इसीलिए पंक्चर भी जल्दी होते हैं। इनके मुकाबले ट्यूबलेस टायर के कई फायदे होते हैं। मसलन, ट्यूबलेस टायर से सड़क पर बेहतर ग्रिप और कंट्रोल मिलता है और खुदा-न-खास्ता टायर पंक्चर हो जाए तो इसमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है। आम धारणा है कि ट्यूबलेस टायर्स अलॉय वील्स पर ही लगाने चाहिए लेकिन यह सही नहीं है। स्टील रिम पर भी ट्यूबलेस टायर्स अच्छी परफॉमेंर्स देते हैं। कीमत के लिहाज से ट््यूबलेस टायर ट्यूब टायर से 300-400 रुपये ही महंगा है।
टायर कब बदलें ज्यादातर टायर बनाने वाली कंपनियां 40 हजार किलोमीटर चलने के बाद टायर बदलने की सलाह देती हैं। लेकिन टायर अच्छी हालत में हैं तो आप इन्हें 50 हजार किलोमीटर तक आराम से चला सकते हैं। इससे ज्यादा दूरी पर पुराने टायर से काम चलाना सेफ्टी के लिहाज से सही नहीं है। नियमों के मुताबिक, ट्रेड (टायर पर बने खांचे) की गहराई 1/6 मिमी रह जाए तो टायर बदल दिया जाना चाहिए। जिन लोगों की गाडि़यां काफी कम चलती हैं, उन्हें भी पांच साल के बाद हर साल टायरों का चेकअप कराना चाहिए। 10 साल से पुराने टायर इस्तेमाल नहीं करने चाहिए, चाहे वे जितना भी कम चले हों।
- हर टायर की अपनी उम्र होती है और सेफ्टी के लिहाज से यह जरूरी है कि उसे सही समय पर बदल दिया जाए। टायर कट या फट जाए, किसी एक जगह पर ज्यादा घिस जाए, रिपेयर न हो सकने लायक पंक्चर हो जाए या फिर जल्दी-जल्दी पंक्चर होने लगे, तो उसे बदल देना चाहिए।
टायर की देखरेख महीने में एक बार टायर प्रेशर जरूर चेक कराएं। टायरों में हवा उतनी ही रखें जितनी कार कंपनी ने रेकमेंड की हो। ज्यादा या कम हवा भराने से टायर जल्दी घिसेंगे। कंपनियां यह भी बताती हैं कि कम लोड और फुल लोड पर टायर प्रेशर कितना होना चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि स्पेयर टायर में भी एयर प्रेशर हमेशा सही हो। हर 5000 किलोमीटर पर वील रोटेशन और अलाइनमेंट करा लने से टायर की लाइफ बढ़ जाएगी। टायरों के ट्रेड में फंसे कंकड़-पत्थर, कील-कांटे भी समय-समय पर निकालें। पेट्रोलियम बेस्ड डिटरजेंट या केमिकल क्लीनर से टायरों की सफाई न करें।
अपसाइजिंग कई बार सड़कों पर ऐसी गाड़ियां नजर आती हैं, जिनमें काफी चौड़े टायर लगे होते हैं। चौड़े और मोटे टायर लगाने से गाड़ी का लुक काफी स्पोटीर् हो जाता है और सड़क पर ग्रिप बेहतर हो जाती है, लेकिन इससे गाड़ी के माइलेज पर असर पड़ता है। ज्यादातर कार कंपनियां अपसाइजिंग की सलाह नहीं देतीं। उनका तर्क यह होता है कि गाड़ी में ऑरिजिनली उसी साइज के टायर लगाए जाते हैं जो उसके लिए परफेक्ट हों। इसलिए अपसाइजिंग से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। ज्यादातर टायर कंपनियों की वेबसाइट पर आपको अपसाइजिंग गाइड मिल जाएगी।
टायर कैसे खरीदें भारत में ज्यादातर कारों के टायर (लग्जरी और एसयूवी कैटिगरी को छोड़कर) की कीमत 1500 रुपये से 4000 रुपये के बीच है। टायरों के दाम सीजन के हिसाब से घटते-बढ़ते रहते हैं। टायरों की कीमत में मोलभाव की काफी गुंजाइश होती है, इसलिए माकेर्ट का सवेर् करें और अलग-अलग कंपनियों के टायर देखें, फिर अपनी जरूरत के हिसाब से टायर चुनें। टायर हमेशा ऑथराइज्ड डीलर से ही खरीदें और पक्का बिल जरूर लें। इससे टायर में दिक्कत आने पर उसे बदलने में सहूलियत रहेगी। टायर खरीदते समय ध्यान रखें कि उनकी मैन्युफैक्चरिंग डेट ज्यादा पहले की न हो। एक साल से पहले बने टायर हरगिज न खरीदें। इधर बाजार में चीन के बने टायर भी काफी दिख रहे हैं। उनके लुक्स पर न जाएं और वॉरंटी वाले टायर ही खरीदें।
इंजन के बाद टायरों को कार का सबसे अहम हिस्सा माना जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि सड़क और गाड़ी के बीच का रिश्ता टायरों पर ही निर्भर होता है। कार का माइलेज, हैंडलिंग, बैलेंस और कंट्रोल जैसी कई चीजें काफी हद तक टायरों पर निर्भर होती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपनी कार के लिए सही टायरों का ही चुनाव करें।
टायर की कुंडली टायर की साइडवॉल पर एक कोड लिखा होता है। टायर के बारे में सारी जानकारी इसी कोड में होती है। मसलन, टायर पर लिखा है P205/65 R 16 95 S तो इसमें P का मतलब है पैसेंजर कार टायर। 205 टायर की चौड़ाई (मिमी में), 65 इसका आस्पेक्ट रेश्यो यानी टायर की चौड़ाई और ऊंचाई का अनुपात। R यानी रेडियल और 16 रिम का डायमीटर यानी व्यास बताता है। यहां 95 लोड इंडेक्स है, जो बताता है कि टायर अधिकतम कितना वजन उठा सकता है। लोड इंडेक्स की स्केल देखने से पता चलता है कि 96 रेटिंग का टायर 690 किलो वजन के लिए बना है। अंत में S यानी टायर की स्पीड रेटिंग। हर टायर के लिए स्पीड की मैक्सिमम लिमिट होती है। इसके लिए A1 से लेकर Y तक रेटिंग दी जाती है। A1 रेटिंग वाले टायर 5 किमी प्रति घंटा और Y रेटिंग वाले टायर 300 किमी प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार पर चल सकते हैं। इस रफ्तार से ज्यादा तेज चलाने पर टायर खराब हो सकता है।
किस्म-किस्म के टायर आमतौर पर टायर दो तरह के होते हैं - ट्यूब टायर और ट्यूबलेस टायर। ज्यादातर छोटी गाडि़यों में कार कंपनियां ट्यूब टायर लगाकर देती हैं। प्रीमियम कारों और छोटी कारों के टॉप-एंड मॉडल्स में ट्यूबलेस टायर ज्यादा दिखते हैं। ट्यूब टायर आमतौर पर ट्यूबलेस टायरों से कम कीमत के होते हैं लेकिन ट्यूब और टायर के बीच होने वाले फ्रिक्शन की वजह से ये टायर जल्दी गर्म होते हैं और इसीलिए पंक्चर भी जल्दी होते हैं। इनके मुकाबले ट्यूबलेस टायर के कई फायदे होते हैं। मसलन, ट्यूबलेस टायर से सड़क पर बेहतर ग्रिप और कंट्रोल मिलता है और खुदा-न-खास्ता टायर पंक्चर हो जाए तो इसमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है। आम धारणा है कि ट्यूबलेस टायर्स अलॉय वील्स पर ही लगाने चाहिए लेकिन यह सही नहीं है। स्टील रिम पर भी ट्यूबलेस टायर्स अच्छी परफॉमेंर्स देते हैं। कीमत के लिहाज से ट््यूबलेस टायर ट्यूब टायर से 300-400 रुपये ही महंगा है।
टायर कब बदलें ज्यादातर टायर बनाने वाली कंपनियां 40 हजार किलोमीटर चलने के बाद टायर बदलने की सलाह देती हैं। लेकिन टायर अच्छी हालत में हैं तो आप इन्हें 50 हजार किलोमीटर तक आराम से चला सकते हैं। इससे ज्यादा दूरी पर पुराने टायर से काम चलाना सेफ्टी के लिहाज से सही नहीं है। नियमों के मुताबिक, ट्रेड (टायर पर बने खांचे) की गहराई 1/6 मिमी रह जाए तो टायर बदल दिया जाना चाहिए। जिन लोगों की गाडि़यां काफी कम चलती हैं, उन्हें भी पांच साल के बाद हर साल टायरों का चेकअप कराना चाहिए। 10 साल से पुराने टायर इस्तेमाल नहीं करने चाहिए, चाहे वे जितना भी कम चले हों।
- हर टायर की अपनी उम्र होती है और सेफ्टी के लिहाज से यह जरूरी है कि उसे सही समय पर बदल दिया जाए। टायर कट या फट जाए, किसी एक जगह पर ज्यादा घिस जाए, रिपेयर न हो सकने लायक पंक्चर हो जाए या फिर जल्दी-जल्दी पंक्चर होने लगे, तो उसे बदल देना चाहिए।
टायर की देखरेख महीने में एक बार टायर प्रेशर जरूर चेक कराएं। टायरों में हवा उतनी ही रखें जितनी कार कंपनी ने रेकमेंड की हो। ज्यादा या कम हवा भराने से टायर जल्दी घिसेंगे। कंपनियां यह भी बताती हैं कि कम लोड और फुल लोड पर टायर प्रेशर कितना होना चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि स्पेयर टायर में भी एयर प्रेशर हमेशा सही हो। हर 5000 किलोमीटर पर वील रोटेशन और अलाइनमेंट करा लने से टायर की लाइफ बढ़ जाएगी। टायरों के ट्रेड में फंसे कंकड़-पत्थर, कील-कांटे भी समय-समय पर निकालें। पेट्रोलियम बेस्ड डिटरजेंट या केमिकल क्लीनर से टायरों की सफाई न करें।
अपसाइजिंग कई बार सड़कों पर ऐसी गाड़ियां नजर आती हैं, जिनमें काफी चौड़े टायर लगे होते हैं। चौड़े और मोटे टायर लगाने से गाड़ी का लुक काफी स्पोटीर् हो जाता है और सड़क पर ग्रिप बेहतर हो जाती है, लेकिन इससे गाड़ी के माइलेज पर असर पड़ता है। ज्यादातर कार कंपनियां अपसाइजिंग की सलाह नहीं देतीं। उनका तर्क यह होता है कि गाड़ी में ऑरिजिनली उसी साइज के टायर लगाए जाते हैं जो उसके लिए परफेक्ट हों। इसलिए अपसाइजिंग से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। ज्यादातर टायर कंपनियों की वेबसाइट पर आपको अपसाइजिंग गाइड मिल जाएगी।
टायर कैसे खरीदें भारत में ज्यादातर कारों के टायर (लग्जरी और एसयूवी कैटिगरी को छोड़कर) की कीमत 1500 रुपये से 4000 रुपये के बीच है। टायरों के दाम सीजन के हिसाब से घटते-बढ़ते रहते हैं। टायरों की कीमत में मोलभाव की काफी गुंजाइश होती है, इसलिए माकेर्ट का सवेर् करें और अलग-अलग कंपनियों के टायर देखें, फिर अपनी जरूरत के हिसाब से टायर चुनें। टायर हमेशा ऑथराइज्ड डीलर से ही खरीदें और पक्का बिल जरूर लें। इससे टायर में दिक्कत आने पर उसे बदलने में सहूलियत रहेगी। टायर खरीदते समय ध्यान रखें कि उनकी मैन्युफैक्चरिंग डेट ज्यादा पहले की न हो। एक साल से पहले बने टायर हरगिज न खरीदें। इधर बाजार में चीन के बने टायर भी काफी दिख रहे हैं। उनके लुक्स पर न जाएं और वॉरंटी वाले टायर ही खरीदें।
प्रॉपर्टी की खरीदारी आज इतना महंगा सौदा हो चुका है कि इसे अकेले दम पर खरीदना आसान काम नहीं रहा। ऐसे में कई लोग मिलकर भी प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं। हालांकि इस दौर में आपको इसके तमाम कानूनी पहलुओं के बारे में भी जानकारी जरूर रखनी चाहिए।
अगर किसी प्रॉपर्टी का मालिकाना हक एक से ज्यादा व्यक्तियों के नाम हो, तो इसे 'जॉइंट ओनरशिप' या साझा मालिकाना हक कहते हैं। पैतृक संपत्ति में बेटे व बेटियों का साझा व समान हिस्सा होता है। किसी भी प्रॉपर्टी का कोई को-ओनर प्रॉपर्टी में अपनी हिस्सेदारी किसी अजनबी या दूसरे को-ओनर के नाम हस्तांतरित कर सकता है। यह हस्तांतरण पाने वाला व्यक्ति प्रॉपर्टी का को-ओनर हो जाता है। बंटवारे के जरिए को-ओनरशिप को इकलौते मालिकाना हक में भी तब्दील किया जा सकता है। अगर किसी प्रॉपर्टी में किसी का शेयर है, तो इसका मतलब हुआ कि उस प्रॉपर्टी की जॉइंट ओनरशिप है। को-ओनर के पास प्रॉपर्टी पर कब्जे का अधिकार, उसका इस्तेमाल करने का अधिकार और यहां तक कि उसे बेचने तक का अधिकार होता है।
टेनेंट्स-इन-कॉमन 'टेनेंट्स-इन-कॉमन' को-ओनरशिप का एक प्रकार है, लेकिन इस तरह की को-ओनरशिप के बारे में कानूनी दस्तावेजों में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं बताया गया है। पूरी प्रॉपर्टी में प्रत्येक टेनेंट-इन-कॉमन का अलग-अलग हित होता है। अलग-अलग हित होने के बावजूद प्रत्येक टेनेंट-इन-कॉमन के पास यह अधिकार होता है कि वह पूरी प्रॉपर्टी का पजेशन रख सकता है या उसे इस्तेमाल कर सकता है। यह जरूरी नहीं है कि पूरी प्रॉपर्टी में प्रत्येक टेनेंट-इन-कॉमन का अलग-अलग, लेकिन बराबर हित हो। पूरी प्रॉपर्टी में उनके हित एक-दूसरे से कम या ज्यादा भी हो सकते हैं। उन सभी के पास अपने-अपने हित किसी दूसरे के नाम हस्तांतरण करने का भी अधिकार होता है, लेकिन उनके पास सर्वाइवरशिप का अधिकार नहीं होता। ऐसे में किसी टेनेंट-इन-कॉमन की मौत के बाद उनका हित या तो वसीयत या फिर कानून के मुताबिक हस्तांतरित होता है। जिस व्यक्ति के नाम यह हस्तांतरण होता है, वह को-ओनर्स के साथ टेनेंट-इन-कॉमन बन जाता है।
जॉइट टेनेंसी 'जॉइंट टेनेंसी' में सर्वाइवरशिप का अधिकार होता है। किसी जॉइट टेनेंट की मौत के बाद, प्रॉपर्टी में उनका हित तत्काल बाकी जीवित बचे जॉयंट टेनेंट्स के नाम हस्तांतरित हो जाता है। जॉयंट टेनेंट्स पूरी प्रॉपर्टी में एक एकीकृत हित के अधिकारी होते हैं। प्रत्येक जॉइंट टेनेंट का प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा होना चाहिए। प्रत्येक जॉइंट टेनेंट पूरी प्रॉपर्टी का कब्जा रख सकता है, बशर्ते इससे दूसरे जॉइंट टेनेंट के अधिकारों का हनन नहीं होता हो। जॉइंट टेनेंसी हासिल करने के लिए कई शर्तें पूरी करनी होती हैं। जॉइंट टेनेंट्स के हित अलग-अलग नहीं हो सकते और वे अपने-अपने हित एक ही तरीके से भुना सकते हैं। जॉइंट टेनेंसी वसीयत या डीड के जरिए बहाल कराई जा सकती है।
को-ओनरशिप इस तरह की को-ओनरशिप खासकर पति-पत्नी के लिए है, क्योंकि इसमें सर्वाइवरशिप का अधिकार हासिल है। यानी किसी एक की मौत के बाद प्रॉपर्टी का हित अपने आप दूसरे जीवित बचे ओनर के पास हस्तांतरित हो जाता है। इस तरह की ओनरशिप के तहत पति या पत्नी में से किसी को भी अपने हित किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित करने का अधिकार नहीं है। हालांकि पति या पत्नी आपस में यह हस्तांतरण कर सकते हैं। इस तरह की टेनेंसी तलाक, पति-पत्नी में से किसी की मौत या फिर पति-पत्नी के बीच आपसी करार के जरिए ही खत्म की जा सकती है।
ट्रांसफर ऑफ प्रॉपटीर् एक्ट, 1882 की धारा 44 में किसी को-ओनर द्वारा अपने अधिकार हस्तांतरित किए जाने से संबंधित नियमों का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक, किसी अचल संपत्ति का को-ओनर कानूनी तौर पर संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी हस्तांतरित कर सकता है। यह हस्तांतरण पाने वाले व्यक्ति के पास हस्तांतरण करने वाले के सारे अधिकार आ जाते हैं और वह प्रॉपर्टी के बंटवारे की मांग भी कर सकता है।
अगर किसी प्रॉपर्टी का मालिकाना हक एक से ज्यादा व्यक्तियों के नाम हो, तो इसे 'जॉइंट ओनरशिप' या साझा मालिकाना हक कहते हैं। पैतृक संपत्ति में बेटे व बेटियों का साझा व समान हिस्सा होता है। किसी भी प्रॉपर्टी का कोई को-ओनर प्रॉपर्टी में अपनी हिस्सेदारी किसी अजनबी या दूसरे को-ओनर के नाम हस्तांतरित कर सकता है। यह हस्तांतरण पाने वाला व्यक्ति प्रॉपर्टी का को-ओनर हो जाता है। बंटवारे के जरिए को-ओनरशिप को इकलौते मालिकाना हक में भी तब्दील किया जा सकता है। अगर किसी प्रॉपर्टी में किसी का शेयर है, तो इसका मतलब हुआ कि उस प्रॉपर्टी की जॉइंट ओनरशिप है। को-ओनर के पास प्रॉपर्टी पर कब्जे का अधिकार, उसका इस्तेमाल करने का अधिकार और यहां तक कि उसे बेचने तक का अधिकार होता है।
टेनेंट्स-इन-कॉमन 'टेनेंट्स-इन-कॉमन' को-ओनरशिप का एक प्रकार है, लेकिन इस तरह की को-ओनरशिप के बारे में कानूनी दस्तावेजों में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं बताया गया है। पूरी प्रॉपर्टी में प्रत्येक टेनेंट-इन-कॉमन का अलग-अलग हित होता है। अलग-अलग हित होने के बावजूद प्रत्येक टेनेंट-इन-कॉमन के पास यह अधिकार होता है कि वह पूरी प्रॉपर्टी का पजेशन रख सकता है या उसे इस्तेमाल कर सकता है। यह जरूरी नहीं है कि पूरी प्रॉपर्टी में प्रत्येक टेनेंट-इन-कॉमन का अलग-अलग, लेकिन बराबर हित हो। पूरी प्रॉपर्टी में उनके हित एक-दूसरे से कम या ज्यादा भी हो सकते हैं। उन सभी के पास अपने-अपने हित किसी दूसरे के नाम हस्तांतरण करने का भी अधिकार होता है, लेकिन उनके पास सर्वाइवरशिप का अधिकार नहीं होता। ऐसे में किसी टेनेंट-इन-कॉमन की मौत के बाद उनका हित या तो वसीयत या फिर कानून के मुताबिक हस्तांतरित होता है। जिस व्यक्ति के नाम यह हस्तांतरण होता है, वह को-ओनर्स के साथ टेनेंट-इन-कॉमन बन जाता है।
जॉइट टेनेंसी 'जॉइंट टेनेंसी' में सर्वाइवरशिप का अधिकार होता है। किसी जॉइट टेनेंट की मौत के बाद, प्रॉपर्टी में उनका हित तत्काल बाकी जीवित बचे जॉयंट टेनेंट्स के नाम हस्तांतरित हो जाता है। जॉयंट टेनेंट्स पूरी प्रॉपर्टी में एक एकीकृत हित के अधिकारी होते हैं। प्रत्येक जॉइंट टेनेंट का प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा होना चाहिए। प्रत्येक जॉइंट टेनेंट पूरी प्रॉपर्टी का कब्जा रख सकता है, बशर्ते इससे दूसरे जॉइंट टेनेंट के अधिकारों का हनन नहीं होता हो। जॉइंट टेनेंसी हासिल करने के लिए कई शर्तें पूरी करनी होती हैं। जॉइंट टेनेंट्स के हित अलग-अलग नहीं हो सकते और वे अपने-अपने हित एक ही तरीके से भुना सकते हैं। जॉइंट टेनेंसी वसीयत या डीड के जरिए बहाल कराई जा सकती है।
को-ओनरशिप इस तरह की को-ओनरशिप खासकर पति-पत्नी के लिए है, क्योंकि इसमें सर्वाइवरशिप का अधिकार हासिल है। यानी किसी एक की मौत के बाद प्रॉपर्टी का हित अपने आप दूसरे जीवित बचे ओनर के पास हस्तांतरित हो जाता है। इस तरह की ओनरशिप के तहत पति या पत्नी में से किसी को भी अपने हित किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित करने का अधिकार नहीं है। हालांकि पति या पत्नी आपस में यह हस्तांतरण कर सकते हैं। इस तरह की टेनेंसी तलाक, पति-पत्नी में से किसी की मौत या फिर पति-पत्नी के बीच आपसी करार के जरिए ही खत्म की जा सकती है।
ट्रांसफर ऑफ प्रॉपटीर् एक्ट, 1882 की धारा 44 में किसी को-ओनर द्वारा अपने अधिकार हस्तांतरित किए जाने से संबंधित नियमों का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक, किसी अचल संपत्ति का को-ओनर कानूनी तौर पर संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी हस्तांतरित कर सकता है। यह हस्तांतरण पाने वाले व्यक्ति के पास हस्तांतरण करने वाले के सारे अधिकार आ जाते हैं और वह प्रॉपर्टी के बंटवारे की मांग भी कर सकता है।
पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार रेल टर्मिनल का उद्घाटन सोमवार के बजाय शनिवार को ही हो जाएगा। 24 घंटे से भी कम वक्त में रेलवे ने अपने फैसले को बदल दिया। तर्क दिया गया कि रेल टर्मिनल तैयार है इसलिए उद्घाटन का इंतजार क्यों किया जाए? लिहाजा रेल टर्मिनल के उद्घाटन के वक्त अब फरक्का जाने वाली ट्रेन के बजाय रेल मंत्री लखनऊ जाने वाली विंटर स्पेशल ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगी।
गुरुवार शाम को ही उत्तर रेलवे ने ऐलान किया था कि आनंद विहार रेल टर्मिनल का उद्घाटन सोमवार को किया जाएगा। लेकिन शुक्रवार को तय किया गया कि अब उद्घाटन शनिवार को शाम 5 बजे होगा। यह शायद पहला मौका है जब रेलवे ने अपने कार्यक्रम को तय वक्त से पहले ही करने का फैसला किया है। तीन प्लैटफॉर्म वाले इस टर्मिनल का फिलहाल एक ही प्लैटफॉर्म चालू होगा लेकिन जल्द ही बाकी दोनों प्लैटफॉर्म भी चालू कर दिए जाएंगे।
रेल टर्मिनल का शिलान्यास जनवरी 2004 में तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने किया था। हालांकि कायदे से यह रेल टर्मिनल तीन साल में ही बनकर तैयार होना चाहिए था लेकिन टर्मिनल लगभग 6 साल के बाद अब तैयार हुआ है। लगभग 110 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किए गए इस टर्मिनल को तैयार करने के साथ यह भी फैसला हुआ है कि इस टर्मिनल पर ट्रेन में पार्सलों को चढ़ाने और उतारने का काम प्लैटफॉर्म पर ट्रेन आने से पहले ही कर दिया जाएगा यानी नॉन पैसेंजर एरिया में ही पार्सल आदि सामान चढ़ा दिया जाएगा। ट्रेन के कोच के चार्ट भी लगा दिए जाएंगे यानी जब प्लैटफॉर्म पर ट्रेन पहुंचेगी, तो वहां सिर्फ पैसेंजर ही ट्रेन में चढ़ेंगे और उतरेंगे। अन्य स्टेशनों पर ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से पैसेंजरों को भारी दिक्कत होती है और कई बार तो पार्सलों की वजह से दुर्घटनाएं भी होती हैं।
उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी अनंत स्वरूप ने बताया कि टर्मिनल का डिजाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि पैसेंजरों को दिक्कत न हो। सीढ़ियां, एस्केलेटर और लिफ्ट के अलावा रैंप भी बनाए गए हैं ताकि पैसेंजरों को चढ़ने-उतरने में दिक्कत न हो। यही नहीं, जब इस टर्मिनल के तीनों प्लैटफॉर्म चालू हो जाएंगे, तब पैसेंजरों को एक से दूसरे प्लैटफॉर्म जाने के लिए फुटओवर ब्रिज पर चढ़ने की जरूरत नहीं होगी बल्कि वे सबवे के जरिए आ-जा सकेंगे। इसी स्टेशन पर रेल रिजर्वेशन सिस्टम भी लगाया जा रहा है ताकि ट्रेनों के एडवांस टिकट यहां से भी खरीदे जा सकें।
गुरुवार शाम को ही उत्तर रेलवे ने ऐलान किया था कि आनंद विहार रेल टर्मिनल का उद्घाटन सोमवार को किया जाएगा। लेकिन शुक्रवार को तय किया गया कि अब उद्घाटन शनिवार को शाम 5 बजे होगा। यह शायद पहला मौका है जब रेलवे ने अपने कार्यक्रम को तय वक्त से पहले ही करने का फैसला किया है। तीन प्लैटफॉर्म वाले इस टर्मिनल का फिलहाल एक ही प्लैटफॉर्म चालू होगा लेकिन जल्द ही बाकी दोनों प्लैटफॉर्म भी चालू कर दिए जाएंगे।
रेल टर्मिनल का शिलान्यास जनवरी 2004 में तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने किया था। हालांकि कायदे से यह रेल टर्मिनल तीन साल में ही बनकर तैयार होना चाहिए था लेकिन टर्मिनल लगभग 6 साल के बाद अब तैयार हुआ है। लगभग 110 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किए गए इस टर्मिनल को तैयार करने के साथ यह भी फैसला हुआ है कि इस टर्मिनल पर ट्रेन में पार्सलों को चढ़ाने और उतारने का काम प्लैटफॉर्म पर ट्रेन आने से पहले ही कर दिया जाएगा यानी नॉन पैसेंजर एरिया में ही पार्सल आदि सामान चढ़ा दिया जाएगा। ट्रेन के कोच के चार्ट भी लगा दिए जाएंगे यानी जब प्लैटफॉर्म पर ट्रेन पहुंचेगी, तो वहां सिर्फ पैसेंजर ही ट्रेन में चढ़ेंगे और उतरेंगे। अन्य स्टेशनों पर ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से पैसेंजरों को भारी दिक्कत होती है और कई बार तो पार्सलों की वजह से दुर्घटनाएं भी होती हैं।
उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी अनंत स्वरूप ने बताया कि टर्मिनल का डिजाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि पैसेंजरों को दिक्कत न हो। सीढ़ियां, एस्केलेटर और लिफ्ट के अलावा रैंप भी बनाए गए हैं ताकि पैसेंजरों को चढ़ने-उतरने में दिक्कत न हो। यही नहीं, जब इस टर्मिनल के तीनों प्लैटफॉर्म चालू हो जाएंगे, तब पैसेंजरों को एक से दूसरे प्लैटफॉर्म जाने के लिए फुटओवर ब्रिज पर चढ़ने की जरूरत नहीं होगी बल्कि वे सबवे के जरिए आ-जा सकेंगे। इसी स्टेशन पर रेल रिजर्वेशन सिस्टम भी लगाया जा रहा है ताकि ट्रेनों के एडवांस टिकट यहां से भी खरीदे जा सकें।
धरती के जैसे किसी और ग्रह की खोज अभी थमी नहीं है। एस्ट्रोनॉमर्स ने एक ऐसा नया ग्रह खोजा है जो धरती से महज छह गुना बड़ा है और जिस पर 75 फीसदी पानी है। वैज्ञानिक हबल टेलीस्कोप का सहारा लेकर इसकी और नजदीकी जांच पड़ताल करने की फिराक में हैं।
हालांकि, इस ग्रह का टेंपरेचर धरती पर मिलने वाले जीवन के अनुकूल नहीं है। अमेरिका के हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह नया ग्रह धरती से सिर्फ 40 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। प्रकाश द्वारा एक साल में तय की गई दूरी एक प्रकाश वर्ष कहलाती है। पानी से लबालब भरा यह ग्रह या वॉटर वर्ल्ड एक कम चमकदार सितारे के आसपास चक्कर काटता है। इसका एक चक्कर महज 13 लाख मील का है जिसे यह सिर्फ 38 घंटों में पूरा कर लेता है। वैज्ञानिक इसमें इसलिए दिलचस्पी ले रहे हैं क्यांेकि यह हमारे सोलरसिस्टम से बाहर पाए जाने वाले ग्रहों में सबसे ज्यादा धरती जैसा है। सेंटर के रिसर्चर जैकोरी बर्टा का कहना था, अपने काफी गर्म तापमान के बावजूद यह एक वॉटर र्वल्ड जैसा ज्यादा लगता है। जैकोरी ने ही इस ग्रह को खोजा है। उनका कहना है कि अब तक की जानकारी मंे आए तमाम एक्सोप्लेनेट से यह काफी छोटा, ठंडा और धरती जैसा है। यह ग्रह जिस तारे के आसपास चक्कर लगा रहा है उसका नाम जीजे1214 है। इसे एमअर्थ प्रोजेक्ट के तहत धरती पर स्थित दूरबीनों की एक सीरीज की मदद से खोजा गया है। वैसे ये दूरबीन या टेलीस्कोप शौकिया लोगों के इस्तेमाल वाले टेलीस्कोप से ज्यादा उन्नत नहीं हैं।
इस ग्रह को सुपरअर्थ का नाम भी दिया गया है क्योंकि इसका आकार धरती से तो बड़ा है लेकिन यूरेनस और नेपच्यून जैसे विशाल ग्रहों से छोटा है। लेकिन इसकी समस्या है इसकी सतह का बहुत हाई टेंपरेचर जोकि लगभग 200 डिग्री सेल्सियस है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस ग्रह की सतह के अलावा भी कुछ है जो इसके पैरंट स्टार से आने वाली रोशनी को रोक रहा है। मुमकिन है यह इस ग्रह का वातावरण हो जोकि मुख्यत: हाईड्रोजन और हीलियम से बना हो। अब वैज्ञानिक सोच रहे हैं कि हबल टेलीस्कोप को इसकी ओर मोड़ दिया जाए ताकि पता चल सके कि अगर इस पर वातावरण है तो किस तरह का है।
हालांकि, इस ग्रह का टेंपरेचर धरती पर मिलने वाले जीवन के अनुकूल नहीं है। अमेरिका के हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह नया ग्रह धरती से सिर्फ 40 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। प्रकाश द्वारा एक साल में तय की गई दूरी एक प्रकाश वर्ष कहलाती है। पानी से लबालब भरा यह ग्रह या वॉटर वर्ल्ड एक कम चमकदार सितारे के आसपास चक्कर काटता है। इसका एक चक्कर महज 13 लाख मील का है जिसे यह सिर्फ 38 घंटों में पूरा कर लेता है। वैज्ञानिक इसमें इसलिए दिलचस्पी ले रहे हैं क्यांेकि यह हमारे सोलरसिस्टम से बाहर पाए जाने वाले ग्रहों में सबसे ज्यादा धरती जैसा है। सेंटर के रिसर्चर जैकोरी बर्टा का कहना था, अपने काफी गर्म तापमान के बावजूद यह एक वॉटर र्वल्ड जैसा ज्यादा लगता है। जैकोरी ने ही इस ग्रह को खोजा है। उनका कहना है कि अब तक की जानकारी मंे आए तमाम एक्सोप्लेनेट से यह काफी छोटा, ठंडा और धरती जैसा है। यह ग्रह जिस तारे के आसपास चक्कर लगा रहा है उसका नाम जीजे1214 है। इसे एमअर्थ प्रोजेक्ट के तहत धरती पर स्थित दूरबीनों की एक सीरीज की मदद से खोजा गया है। वैसे ये दूरबीन या टेलीस्कोप शौकिया लोगों के इस्तेमाल वाले टेलीस्कोप से ज्यादा उन्नत नहीं हैं।
इस ग्रह को सुपरअर्थ का नाम भी दिया गया है क्योंकि इसका आकार धरती से तो बड़ा है लेकिन यूरेनस और नेपच्यून जैसे विशाल ग्रहों से छोटा है। लेकिन इसकी समस्या है इसकी सतह का बहुत हाई टेंपरेचर जोकि लगभग 200 डिग्री सेल्सियस है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस ग्रह की सतह के अलावा भी कुछ है जो इसके पैरंट स्टार से आने वाली रोशनी को रोक रहा है। मुमकिन है यह इस ग्रह का वातावरण हो जोकि मुख्यत: हाईड्रोजन और हीलियम से बना हो। अब वैज्ञानिक सोच रहे हैं कि हबल टेलीस्कोप को इसकी ओर मोड़ दिया जाए ताकि पता चल सके कि अगर इस पर वातावरण है तो किस तरह का है।
जी हां, दिल्ली के हालात देखकर लगता है कि ऑथराइज्ड पार्किंग में भी गाड़ी अपने रिस्क पर ही खड़ी करें। दिल्ली की तमाम लाइसेंसिंग अथॉरिटी ठेकेदार से अग्रीमेंट साइन करके मोटी कमाई तो कर रही हैं, मगर जनता के प्रति उनकी कोई जवाबदेही नहीं है। एमसीडी की स्थिति तो और भी दयनीय है। बार-बार शिकायत करने पर भी यहां से कोई जवाब नहीं मिलता। न कोई सेंट्रलाइज्ड शिकायत व्यवस्था है, न कोई जवाबदेही।
लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है। आपको अगर ऑथराइज्ड पार्किंग में कोई परेशानी हो, आपकी गाड़ी डैमेज हो जाए, सामान चोरी हो जाए, तय रकम से ज्यादा पैसे वसूले जाएं या आपसे बदसलूकी हो तो आप सही जगह पर शिकायत कर इंसाफ पा सकते हैं।
एनडीएमसी की पार्किंग के लिए शिकायत करें
कंट्रोल रूम : 011-23348300, 23348301
डायरेक्टर एनडीएमसी को भी लिख सकते हैं। पता है : डायरेक्टर (एन्फोर्समेंट), एनडीएमसी, चौथी मंजिल, प्रगति भवन, जय सिंह रोड, नई दिल्ली-110001
आमतौर पर शिकायत दर्ज कराने के 10 दिन में कार्रवाई हो जाती है और उसकी सूचना भी भेज दी जाती है। यदि आप इनकी कार्रवाई से संतुष्ट न हों तो सेक्रेटरी एनडीएमसी को इस पते पर लिख सकते हैं:
सेक्रटरी, एनडीएमसी, पालिका केंद्र, संसद मार्ग, नई दिल्ली-110001
एमसीडी की पार्किंग से जुड़ी शिकायतों के लिए उसी जोन के डीसी (डिप्टी कमिश्नर) से शिकायत कर सकते हैं। पता है डिप्टी कमिश्नर, आरपी सेल, कमरा नं. 108, दिल्ली नगर निगम, निगम भवन, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006, फोन: 011-23964763 आप कमिश्नर एमसीडी को भी लिख सकते हैं: कमिश्नर, दिल्ली नगर निगम, टाउन हाल, दिल्ली-110006 डीडीए के पास कुल 67 पार्किंग हैं। डीडीए की पार्किंग में आने वाली परेशानियों के लिए आप संपर्क कर सकते हैं: डायरेक्टर (एलपीसी एंड कमर्शल एस्टेट), ब्लॉक-ए, दूसरी मंजिल, विकास सदन, नई दिल्ली। फोन: 011-24649717, फैक्स: 011-24692328
आप कमिश्नर को भी लिख सकते हैं: कमिश्नर (लैंड), ब्लॉक-ए, पहली मंजिल, विकास सदन, नई दिल्ली फोन: 011-24698350 यदि आप कार्रवाई से संतुष्ट न हों तो उपाध्यक्ष, डीडीए को भी लिख सकते हैं: उपाध्यक्ष, डीडीए, विकास सदन, नई दिल्ली।
जानें अपने अधिकार पार्किंग स्थल पर डिस्प्ले बोर्ड होना अनिवार्य है, जिस पर बड़े व स्पष्ट अक्षरों में पार्किंग का रेट, ठेकेदार का नाम व पता, रजिस्ट्रेशन नं. के अलावा शिकायत अधिकारी का नाम, पता व फोन नं. लिखा होना चाहिए। ऐसा न होने पर आप शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
पार्किंग स्लिप छपी हुई होनी चाहिए, जिस पर आपका आने का समय, गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नं., तय किराये के अलावा पार्किंग साइट की जानकारी होनी चाहिए। पार्किंग स्टाफ जानकारी छिपाने के लिए आधी-अधूरी स्लिप देता है। कटी-फटी स्लिप न लें। इसका विरोध करें। पार्किंग स्थल साफ-सुथरा होना चाहिए। वहां किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं होनी चाहिए। यदि आपकी गाड़ी पार्किंग से चोरी या डैमेज हो जाती है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ठेकेदार की है। सभी पार्किंग स्टाफ का यूनिफॉर्म में होना और उस पर नेम बैज होना अनिवार्य है। ठेकेदार द्वारा नियुक्त सभी स्टाफ का साफ-सुथरा ट्रैक रेकॉर्ड व पुलिस वेरिफिकेशन जरूरी है।
यदि आपकी पार्किंग में खड़ी हुई गाड़ी को ट्रैफिक पुलिस या संबंधित लाइसेंसिंग विभाग की गाड़ी उठा ले जाती है तो इसकी जिम्मेदारी ठेकेदार की है। सभी पार्किंग के लिए रेट तय हैं। तय रेट से ज्यादा चार्ज किए जाने पर शिकायत जरूर करें। दोषी पाए जाने पर जुर्माने के अलावा ठेकेदार का लाइसेंस कैंसल हो सकता है। विभिन्न विभागों द्वारा जारी किए गए 'फ्री' पार्किंग पास को मानने के लिए ठेकेदार बाध्य हैं। सभी पार्किंग में शिकायत पुस्तिका होनी जरूरी है। वाहन मालिक अगर मांगता है तो ठेकेदार को शिकायत पुस्तिका मुहैया करानी होगी। ऐसा नहीं होने पर शिकायत कर सकते हैं। पार्किंग वाला बदसलूकी करे तो शिकायत जरूर करें। पार्किंग स्टाफ को ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी ठेकेदार की है। पार्किंग स्थल के रखरखाव की जिम्मेदारी ठेकेदार की है और वहां की बदइंतजामी से आपको चोट लग जाए तो इसके लिए ठेकेदार जिम्मेदार होगा।
क्या होगी कार्रवाई पार्किंग स्टाफ की मनमानी पर एनडीएमसी के डायरेक्टर एन्फोर्समेंट पी.पी. चतुवेर्दी का कहना है कि जनता के जागरूक होने पर ही इसे रोका जा सकता है। यदि आपको पार्किंग स्थल पर किसी भी परेशानी का सामना करना पड़े तो हमें सूचित करें, हम फौरन एक्शन लेंगे। एमसीडी में आरपी सेल के प्रमुख अमिया चंदा कहते हैं कि अगर वक्त पर आपकी समस्या का हल न हो तो आरटीआई के तहत अपनी शिकायत पर हुई कार्रवाई के बारे में मालूम कर सकते हैं।
एनडीएमसी ठेकेदार पर कम-से-कम पांच हजार रुपये जुर्माना कर सकती है, जबकि एमसीडी केवल 500 रुपये जुर्माना करती है। तय सीमा से ज्यादा रकम वसूलने की स्थिति में ठेकेदार का लाइसेंस कैंसल हो सकता है।
पार्किंग रेट एमसीडी टाइमिंग: एमसीडी की सभी पार्किंग 24 घंटे उपलब्ध होती है। कार : पहले 10 घंटों में 10 रुपये और अगले 10 से 24 घंटों के लिए 20 रुपये। स्कूटर : पहले 10 घंटों के लिए सात रुपये और अगले 10 से 24 घंटों के लिए 15 रुपये। अरुणा आसफ अली रोड पर पार्किंग के लिए 25 रुपये चार्ज किए जाते हैं।
एनडीएमसी टाइमिंग : 8 बजे सुबह से 10 बजे रात तक। क्षेत्र के हिसाब से ए, बी व सी तीन कैटिगरी की पार्किंग हैं। कार : पहले 12 घंटों के लिए 10 रु और 24 घंटे के लिए 15 रुपए चार्ज किए जाते हैं। स्कूटर के लिए पांच और दस रुपये चार्ज किए जाते हैं
लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है। आपको अगर ऑथराइज्ड पार्किंग में कोई परेशानी हो, आपकी गाड़ी डैमेज हो जाए, सामान चोरी हो जाए, तय रकम से ज्यादा पैसे वसूले जाएं या आपसे बदसलूकी हो तो आप सही जगह पर शिकायत कर इंसाफ पा सकते हैं।
एनडीएमसी की पार्किंग के लिए शिकायत करें
कंट्रोल रूम : 011-23348300, 23348301
डायरेक्टर एनडीएमसी को भी लिख सकते हैं। पता है : डायरेक्टर (एन्फोर्समेंट), एनडीएमसी, चौथी मंजिल, प्रगति भवन, जय सिंह रोड, नई दिल्ली-110001
आमतौर पर शिकायत दर्ज कराने के 10 दिन में कार्रवाई हो जाती है और उसकी सूचना भी भेज दी जाती है। यदि आप इनकी कार्रवाई से संतुष्ट न हों तो सेक्रेटरी एनडीएमसी को इस पते पर लिख सकते हैं:
सेक्रटरी, एनडीएमसी, पालिका केंद्र, संसद मार्ग, नई दिल्ली-110001
एमसीडी की पार्किंग से जुड़ी शिकायतों के लिए उसी जोन के डीसी (डिप्टी कमिश्नर) से शिकायत कर सकते हैं। पता है डिप्टी कमिश्नर, आरपी सेल, कमरा नं. 108, दिल्ली नगर निगम, निगम भवन, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006, फोन: 011-23964763 आप कमिश्नर एमसीडी को भी लिख सकते हैं: कमिश्नर, दिल्ली नगर निगम, टाउन हाल, दिल्ली-110006 डीडीए के पास कुल 67 पार्किंग हैं। डीडीए की पार्किंग में आने वाली परेशानियों के लिए आप संपर्क कर सकते हैं: डायरेक्टर (एलपीसी एंड कमर्शल एस्टेट), ब्लॉक-ए, दूसरी मंजिल, विकास सदन, नई दिल्ली। फोन: 011-24649717, फैक्स: 011-24692328
आप कमिश्नर को भी लिख सकते हैं: कमिश्नर (लैंड), ब्लॉक-ए, पहली मंजिल, विकास सदन, नई दिल्ली फोन: 011-24698350 यदि आप कार्रवाई से संतुष्ट न हों तो उपाध्यक्ष, डीडीए को भी लिख सकते हैं: उपाध्यक्ष, डीडीए, विकास सदन, नई दिल्ली।
जानें अपने अधिकार पार्किंग स्थल पर डिस्प्ले बोर्ड होना अनिवार्य है, जिस पर बड़े व स्पष्ट अक्षरों में पार्किंग का रेट, ठेकेदार का नाम व पता, रजिस्ट्रेशन नं. के अलावा शिकायत अधिकारी का नाम, पता व फोन नं. लिखा होना चाहिए। ऐसा न होने पर आप शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
पार्किंग स्लिप छपी हुई होनी चाहिए, जिस पर आपका आने का समय, गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नं., तय किराये के अलावा पार्किंग साइट की जानकारी होनी चाहिए। पार्किंग स्टाफ जानकारी छिपाने के लिए आधी-अधूरी स्लिप देता है। कटी-फटी स्लिप न लें। इसका विरोध करें। पार्किंग स्थल साफ-सुथरा होना चाहिए। वहां किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं होनी चाहिए। यदि आपकी गाड़ी पार्किंग से चोरी या डैमेज हो जाती है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ठेकेदार की है। सभी पार्किंग स्टाफ का यूनिफॉर्म में होना और उस पर नेम बैज होना अनिवार्य है। ठेकेदार द्वारा नियुक्त सभी स्टाफ का साफ-सुथरा ट्रैक रेकॉर्ड व पुलिस वेरिफिकेशन जरूरी है।
यदि आपकी पार्किंग में खड़ी हुई गाड़ी को ट्रैफिक पुलिस या संबंधित लाइसेंसिंग विभाग की गाड़ी उठा ले जाती है तो इसकी जिम्मेदारी ठेकेदार की है। सभी पार्किंग के लिए रेट तय हैं। तय रेट से ज्यादा चार्ज किए जाने पर शिकायत जरूर करें। दोषी पाए जाने पर जुर्माने के अलावा ठेकेदार का लाइसेंस कैंसल हो सकता है। विभिन्न विभागों द्वारा जारी किए गए 'फ्री' पार्किंग पास को मानने के लिए ठेकेदार बाध्य हैं। सभी पार्किंग में शिकायत पुस्तिका होनी जरूरी है। वाहन मालिक अगर मांगता है तो ठेकेदार को शिकायत पुस्तिका मुहैया करानी होगी। ऐसा नहीं होने पर शिकायत कर सकते हैं। पार्किंग वाला बदसलूकी करे तो शिकायत जरूर करें। पार्किंग स्टाफ को ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी ठेकेदार की है। पार्किंग स्थल के रखरखाव की जिम्मेदारी ठेकेदार की है और वहां की बदइंतजामी से आपको चोट लग जाए तो इसके लिए ठेकेदार जिम्मेदार होगा।
क्या होगी कार्रवाई पार्किंग स्टाफ की मनमानी पर एनडीएमसी के डायरेक्टर एन्फोर्समेंट पी.पी. चतुवेर्दी का कहना है कि जनता के जागरूक होने पर ही इसे रोका जा सकता है। यदि आपको पार्किंग स्थल पर किसी भी परेशानी का सामना करना पड़े तो हमें सूचित करें, हम फौरन एक्शन लेंगे। एमसीडी में आरपी सेल के प्रमुख अमिया चंदा कहते हैं कि अगर वक्त पर आपकी समस्या का हल न हो तो आरटीआई के तहत अपनी शिकायत पर हुई कार्रवाई के बारे में मालूम कर सकते हैं।
एनडीएमसी ठेकेदार पर कम-से-कम पांच हजार रुपये जुर्माना कर सकती है, जबकि एमसीडी केवल 500 रुपये जुर्माना करती है। तय सीमा से ज्यादा रकम वसूलने की स्थिति में ठेकेदार का लाइसेंस कैंसल हो सकता है।
पार्किंग रेट एमसीडी टाइमिंग: एमसीडी की सभी पार्किंग 24 घंटे उपलब्ध होती है। कार : पहले 10 घंटों में 10 रुपये और अगले 10 से 24 घंटों के लिए 20 रुपये। स्कूटर : पहले 10 घंटों के लिए सात रुपये और अगले 10 से 24 घंटों के लिए 15 रुपये। अरुणा आसफ अली रोड पर पार्किंग के लिए 25 रुपये चार्ज किए जाते हैं।
एनडीएमसी टाइमिंग : 8 बजे सुबह से 10 बजे रात तक। क्षेत्र के हिसाब से ए, बी व सी तीन कैटिगरी की पार्किंग हैं। कार : पहले 12 घंटों के लिए 10 रु और 24 घंटे के लिए 15 रुपए चार्ज किए जाते हैं। स्कूटर के लिए पांच और दस रुपये चार्ज किए जाते हैं
मन में कुछ मत रख यार..
चार दिन की जिंदगी है...कल का क्या भरोसा..
कह ले ...जो कहना है...बात कर दोस्त बना..
जो है साथ जी ले..हमेशा सब साथ नहीं होगे..
चार दिन की जिंदगी है...कल का क्या भरोसा...
खुल कर जिदंगी जी लो..कब दम गुट जाए..क्या भरोसा..
खुद पर भरोसा कर ..आगे चल जिंदगी चार दिन है...जी ले..
टिश्यू या शरीर के किसी अंग में सेल्स के अनियंत्रित मल्टीप्लीकेशन से कैंसर होता है। कभी- कभी शरीर के कि सी किसी भाग में इससे गांठ हो जाती है। जब तक कोई अंग इससे पूरी तरह प्रभावित नहीं होता तब तक इसका पता भी नहीं चलता। कु छ मामलों में दर्द होता है और कुछ में भूख न लगना या वजन में गिरावट आती है। कैंसर तब होता है जब हमारे शरीर के जैनेटिक मेटिरियल कासिर्नोजेनिक सब्सटेंस से डेमेज हो जाते हैं।
कैंसर के तीन कॉमन कारण हैं
1. सिगरेट, शराब और कई तरह की प्लास्टिक के संपर्क में आना।
2. हाय फैट डायट। यह कई तरह के कैंसर का कारण बनता है।
3. बॉडी में फैट का पर्सेंटेज ज्यादा होना।
इन्हें भी पढ़ें और स्टोरीज़ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें बचाव ए. शराब और सिगरेट स्मोकिंग से बचें। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें। अगर प्लास्टिक के बर्तन का इस्तेमाल माइक्रोवेव या खाना रखने के लिए कर रहे हैं तो अच्छी क्वालिटी का प्लास्टिक इस्तेमाल करें।
बी. अपने और परिवार के खाने पीने पर नियंत्रण रखें। यदि आपका नॉर्मल बॉडी वेट या परॉसेंटेज फेट ज्यादा है तो हाइ फेट खाना जैसे बटर, चीज, क्रीम कुकीज, केक, पेस्ट्रीज, पफ, पिज्जा, बर्गर, डीप फ्राइड फू ड, चिप्स, चाट, मिक्सचर, फ्राइड चिकन, रेड मीट, मटन, कीमा, सूअर का गोश्त आदि हफ्ते में एक बार से ज्यादा न खाएं। इनमें से कोई भी चीज रोजाना नहीं खानी चाहिए।
सी. यदि आप ओवरवेट हैं तो बताई गई चीजें तीन महीने तक अपनी डायट में से हटा दें ताकि आपका वजन सही हो जाए। रेगुलर कार्डियोवस्कुलर एक्सरसाइज जैसे वॉकिंग या जॉगिंग सभी के लिए जरूरी है।
डी. फल, सब्जियां, दाल, साबुत अनाज (आटा, रोटी, होल वीट ब्रेड), मलाई रहित दूध, दही आदि चीजें कैंसर जैसी बीमारी का खतरा कम कर सकते हैं। साथ ही एक दिन में कम से कम पांच फल खाएं। जैसे एक फल सुबह के नाश्ते में ले और दूसरा शाम को छ: बजे या डिनर के बाद ले सकते हैं। आप फ्रेश सलाद लंच और डिनर में ले सकते हैं। इन सब में विटामिन ए, ई या सी होता है जो एंटिऑक्डडेंट के रूप में काम करते हैं। ये कैंसर से लड़ते हैं और उसे बढ़ने से रोकते हैं।
इन सब के अलावा ढाई से तीन लीटर तक पानी रोज पिएं। यह आपके शरीर से टॉक्सिक वेस्ट और दूषित पदार्थ हटा देता है।
कैंसर के तीन कॉमन कारण हैं
1. सिगरेट, शराब और कई तरह की प्लास्टिक के संपर्क में आना।
2. हाय फैट डायट। यह कई तरह के कैंसर का कारण बनता है।
3. बॉडी में फैट का पर्सेंटेज ज्यादा होना।
इन्हें भी पढ़ें और स्टोरीज़ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें बचाव ए. शराब और सिगरेट स्मोकिंग से बचें। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें। अगर प्लास्टिक के बर्तन का इस्तेमाल माइक्रोवेव या खाना रखने के लिए कर रहे हैं तो अच्छी क्वालिटी का प्लास्टिक इस्तेमाल करें।
बी. अपने और परिवार के खाने पीने पर नियंत्रण रखें। यदि आपका नॉर्मल बॉडी वेट या परॉसेंटेज फेट ज्यादा है तो हाइ फेट खाना जैसे बटर, चीज, क्रीम कुकीज, केक, पेस्ट्रीज, पफ, पिज्जा, बर्गर, डीप फ्राइड फू ड, चिप्स, चाट, मिक्सचर, फ्राइड चिकन, रेड मीट, मटन, कीमा, सूअर का गोश्त आदि हफ्ते में एक बार से ज्यादा न खाएं। इनमें से कोई भी चीज रोजाना नहीं खानी चाहिए।
सी. यदि आप ओवरवेट हैं तो बताई गई चीजें तीन महीने तक अपनी डायट में से हटा दें ताकि आपका वजन सही हो जाए। रेगुलर कार्डियोवस्कुलर एक्सरसाइज जैसे वॉकिंग या जॉगिंग सभी के लिए जरूरी है।
डी. फल, सब्जियां, दाल, साबुत अनाज (आटा, रोटी, होल वीट ब्रेड), मलाई रहित दूध, दही आदि चीजें कैंसर जैसी बीमारी का खतरा कम कर सकते हैं। साथ ही एक दिन में कम से कम पांच फल खाएं। जैसे एक फल सुबह के नाश्ते में ले और दूसरा शाम को छ: बजे या डिनर के बाद ले सकते हैं। आप फ्रेश सलाद लंच और डिनर में ले सकते हैं। इन सब में विटामिन ए, ई या सी होता है जो एंटिऑक्डडेंट के रूप में काम करते हैं। ये कैंसर से लड़ते हैं और उसे बढ़ने से रोकते हैं।
इन सब के अलावा ढाई से तीन लीटर तक पानी रोज पिएं। यह आपके शरीर से टॉक्सिक वेस्ट और दूषित पदार्थ हटा देता है।
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