भारतीय मूल की अनुसंधानकर्ता डॉ. किरण आहूजा के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि मिर्च में मधुमेह और दिल के रोगों को रोकने की क्षमता है।
स्टडी के अनुसार मिर्च में पाए जाने वाले कैप्साइसिन तथा डीहाइड्रोकैप्साइसिन नाम के दो तत्वों में ब्लड शुगर को कम करने, इंसुलिन का स्तर बनाए रखने तथा धमनियों की दीवारों पर जमने वाले वसीय अम्लों को कम करने और खून के थक्के रोकने की क्षमता होती है।
भारत में सोने-चांदी का बाजार काफी बड़ा है। सोने की खपत के मामले में भारत विश्व में अव्वल है। यहां इसकी खपत 800 टन सालाना से भी ऊपर है। ऐसे में कम कीमत की चाह और थोड़ा लाभ लोगों को भरमा सकता है। इस बात को सोने का कारोबार करने वाले कारोबारी भी मानते हैं। सोने और चांदी की डिमांड इतनी ज्यादा है कि इसकी खरीदारी को सीमित दायरे में नहीं बांधा जा सकता। ऐसे में लोगों को खरीदारी करते हुए काफी एहतियात बरतने की जरूरत है।
हॉलमार्क सोने के जेवर खरीदते समय उन पर हॉलमार्क का निशान जरूर देखें। हॉलमार्क भारतीय मानक ब्यूरो का क्वॉलिटी का निशान होता है। इसका मतलब है कि सरकार ने इसकी जांच कर ली है और इसकी शुद्घता की गारंटी सरकार ने ले ली है। हॉलमार्क के निशान लगे सोने या गहने की रिसाइक्लिंग यानी उसे दोबारा बेचने पर ग्राहकों को माकेर्ट प्राइस मिलेगा। कट की गुंजाइश नहीं होगी। याद रखें, हॉलमार्क जूलरी से बेहतर कोई विकल्प नहीं होता।
शुद्घता जूलरी की शुद्घता कैरेट में नापी जाती है। सोने की शुद्घता से अर्थ है कि उसमें किसी अन्य धातु का कितना प्रतिशत हिस्सा मिला हुआ है। 18 कैरेट का मतलब है, सोने के 18 हिस्से के साथ अन्य धातु का 82 हिस्सा। जूलरी में 100 प्रतिशत शुद्घ सोना प्रयोग नहीं किया जाता, क्योंकि यह बहुत अधिक मुलायम होने के कारण अधिक समय तक जूलरी के आकार में नहीं रहेगा। जूलरी की अधिकतम शुद्घता 99.9 प्रतिशत हो सकती है। इसे 24 कैरेट कहा जाता है। आम चलन 22 कैरेट (91.6 प्रतिशत शुद्घ) या 18 कैरेट (75 प्रतिशत शुद्घ) गोल्ड जूलरी का होता है। सोने की शुद्घता की जानकारी के लिए जूलर से बात करें।
जूलर जूलरी हमेशा मान्यता प्राप्त जूलर से ही खरीदें। इससे यह फायदा होगा कि गलत या खराब माल को आसानी से वापस किया जा सकता है। ऐसी शॉप्स पर क्वॉलिटी प्रॉडक्ट मिलने की संभावना हमेशा ज्यादा होती है। जूलर की रिफंड और रिटर्न पॉलिसी के बारे में भी पूछ लें।
रसीद जूलरी खरीदने के बाद उसकी रसीद अवश्य लें। इस पर यह लिखवाएं कि सोना कितने कैरेट है और उत्पाद पर हॉलमार्क का निशान लगा हुआ है या नहीं। जूलरी की गारंटी, वजन, शुद्घता, कीमत आदि के बारे में लिखित में लें। सोने के बाजार भाव से कीमत की कैलकुलेशन जरूर करें।
क्या करना होगा कंस्यूमर को सबसे पहले अपना सेल नंबर रजिस्टर्ड करना होगा। इसके लिए एक 5 डिजिट के टोलफ्री नंबर पर कॉल करके डीलर और अपना नंबर फीड करवाना होगा। यह प्रक्रिया पूरी होने पर कंस्यूमर को बस 'LPG' लिखकर पांच अंकों के टोल फ्री नंबर पर SMS करना होगा। आपका मोबाइल नंबर SMS से भी रजिस्टर्ड हो जाएगा।
इंडेन के कंस्यूमर्स को इसके लिए डीलर और अपना नंबर वाला एक SMS *501# पर भेजना होगा। भारत गैस के लिए *502# पर SMS करना होगा। रजिस्ट्रेशन के बाद गैस बुक करने के के लिए आपको 501 (इंडेन) और 502 (भारत) पर 'LPG' एसएमएस करना होगा। मोबाइल नंबर कंस्यूमर का यूनिक नंबर होगा। बुकिंग के साथ कंस्यूमर को बता दिया जाएगा कि गैस की डिलिवरी किस दिन और कब होगी।
HP के उपभोक्ताओं के लिए यह सिस्टम कुछ अलग होगा। कंपनी के एक 10 डिजिट वाले नंबर पर आप कभी भी अपनी कॉल रेकॉर्ड कर सकेंगे। इसमें आपको अपना मोबाइल नंबर और डीलर का नाम बताना होगा। गैस बुकिंग की सूचना आपको एसएमएस से भेज दी जाएगी। इस मामले से जुड़ी शिकायतों को आप एक 6 डिजिट वाले नंबर पर दर्ज करा सकेंगे। यह नंबर सभी के लिए एक होगा।
भारत गैस 52725 (वोडाफोन, MTNL, आइडिया & टाटा मोबाइल )
बाकी मोबाइल यूजर्स- 57333
एसपी गैस 9990923456 इस नंबर पर कभी भी अपनी डिमांड दर्ज की जा सकती है।
शिकायत सभी 3 कंपनियों की शिकायत 155233 पर दर्ज की जा सकेगी।
आइडेंटिटी प्रूफ : वोटर आईडी, पैन कार्ड, पासपोर्ट, फोटो क्रेडिट कार्ड आदि में से कोई एक।
रेजिडेंस प्रूफ : राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, रेंट अग्रीमंट।
इनकम प्रूफ : अगर अपना काम है तो इनकम टैक्स रिटर्न की पिछले तीन साल की कॉपी, अगर नौकरी करते हैं तो फॉर्म 16 और पिछले तीन महीने की सैलरी स्लिप, पिछले छह महीने की बैंक स्टेटमंट।
एम्प्लॉयमंट डीटेल : अगर नौकरी करते हैं और आपकी कंपनी जानी-मानी नहीं है तो कंपनी का लेटर।
प्रोसेसिंग फीस : ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के वक्त बैंक कस्टमर से प्रोसेसिंग फीस भी चार्ज करता है। यह अमूमन लोन की कुल रकम का आधे से 1 फीसदी होता है। कुछ बैंक प्रोसेसिंग फीस नहीं भी लेते हैं।
बात पते की : कुछ बैंक प्रोसेसिंग फीस को लेकर फ्लेक्सिबल होते हैं, इसलिए इस पर मोलभाव करके फीस को कम कराया जा सकता है। लोन अप्लाई करते वक्त ज्यादा से ज्यादा प्रूफ पेश करें। इससे आपका केस स्ट्रॉन्ग होता है।
2. पर्सनल वेरिफिकेशन
ऐप्लिकेशन जमा करने के एक या दो दिन बाद बैंक आपके द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को वेरिफाइ करता है। कस्टमर की इनकम, अड्रेस, आइडेंटिटी आदि जांचने का काम किया जाता है।
बात पते की : इस प्रॉसेस में बैंक कई बार कॉल करके आपका वेरिफिकेशन कर सकता है। इसलिए इस प्रोसेस को पूरा करने के लिए थोड़ा वक्त निकालकर रखें और बार-बार कॉल आने पर परेशान नहीं हो।
3. हरी झंडी
आपके द्वारा दी गई जानकारी और उसके वेरिफिकेशन से अगर बैंक संतुष्ट है तो वह आपके लोन को हरी झंडी दिखा देगा, नहीं तो उसे रिजेक्ट कर देगा। वैसे अगर ऐप्लिकेशन रिजेक्ट की जा रही है तो बैंक आमतौर पर बैंक इसकी कोई वजह नहीं बताते। कस्टमर की रीपेमंट कपैसिटी का आकलन करके यह भी तय कर लिया जाता है कि उसे कितना अमाउंट सैंक्शन होगा।
4. ऑफर लेटर
बात पते की : ऑफर लेटर में दी गई लोन अमाउंट, अवधि और ब्याज दर को चेक कर लें कि क्या वह वही है जो आपके साथ तय की गई थी। ब्याज की दर पर कुछ मोलभाव किया जा सकता है।
5. प्रॉपर्टी वेरिफिकेशन
इसके बाद बैंक आपकी प्रॉपर्टी की कानूनी वैधता को चेक करता है। अपने लीगल डिपार्टमंट की मदद से बैंक प्रॉपर्टी के सभी ओरिजनल डॉक्यूमंट्स को वेरिफाई करके यह सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी हर तरीके से कानूनी है। इसके बाद बैंक अपने एक्सपर्ट्स को साइट पर भेजकर भी प्रॉपर्टी का वेरिफिकेशन कराता है और उसके बाद वैल्यूअर प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करता है।
बात पते की : यह महत्वपूर्ण पॉइंट है। हर कस्टमर को कराना चाहिए। कई बार बैंक लीगल वेरिफिकेशन के लिए कस्टमर से चार्ज करते हैं। इसके लिए मोलभाव कर सकते हैं। अगर लीगल वेरिफिकेशन के बाद बैंक लोन ओके कर देता है तो कस्टमर को खुश हो जाना चाहिए, क्योंकि इसका मतलब है कि उसके द्वारा ली जा रही प्रॉपर्टी कानूनी रूप से पूरी तरह सेफ है। उसमें कोई धोखा नहीं है।
6. अग्रीमंट साइन
इसके बाद लोन अग्रीमंट साइन हो जाता है और कस्टमर के नाम पर प्रॉपर्टी के ट्रांसफर होने के ओरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं। इसके बाद बैंक इस बात के सबूत मांगता है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लोन के अलावा जो रकम आपको देनी है, वह आपने पे कर दी है। बैंक कस्टमर से 36 पोस्ट-डेटेड चेक भी जमा कराता है जिनसे रीपेमंट होता रहे।
बात पते की : ध्यान रखें कि लोन अमाउंट का जो चेक बैंक इश्यू करेगा, वह प्रॉपर्टी बेचने वाले के नाम होगा, कस्टमर के नाम नहीं। ज्यादातर बैंक उसी दिन से ब्याज लेना शुरू कर देते हैं, जिस दिन चेक इश्यू होता है। आपको चेक कब सौंपा गया, इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए जिस दिन चेक इश्यू हो कोशिश करनी चाहिए कि उसी उसे बैंक से ले लिया जाए। प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं, इसलिए इन कागजात की फोटोस्टेट कॉपी अपने पास जरूर रख लें। कई बार बैंक प्रॉपर्टी के कागजात खो देते हैं। ऐसे में बैंक यह कह सकता है कि उसके पास कागज जमा ही नहीं कराए गए। इसलिए जिस वक्त आप प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात जमा कराएं तो बैंक से उसका सटिर्फिकेट भी ले लें।
7. बैंक से चेक आना
अगर प्रॉपर्टी रहने के लिए तैयार है तो लोन का भुगतान एक बार में ही हो जाता है। लेकिन अगर मकान बन रहा हो तो लोन अमाउंट का भुगतान कई हिस्सों में होता है। अगर भुगतान कई हिस्सों में होना है तो बैंक पहले हिस्से के भुगतान के बाद तुरंत ईएमआई शुरू नहीं करता। ईएमआई तब शुरू होती है, जब पूरे अमाउंट का भुगतान हो जाता है। ऐसे में बैंक भुगतान की गई रकम पर तब तक साधारण ब्याज चार्ज करता है, जब तक पूरी रकम का डिस्बर्समंट नहीं हो जाता। इसे प्री-ईएमआई कहा जाता है। इसके लिए बैंक आमतौर पर छह पोस्टडेटेड चेक लेते हैं।
बात पते की : प्रीईएमआई समय से अदा करना सुनिश्चित करें, नहीं तो बैंक लेट फीस चार्ज कर सकता है। किस्त की अदायगी बिल्डर को करने के फौरन बाद उससे ली गई रसीद को बैंक में जमा कराएं।
फिक्स्ड रेट या फ्लोटिंग?
फिक्सड रेट: फिक्स्ड रेट पर लोन लेने से कस्टमर को पूरी अवधि के दौरान बराबर ईएमआई देनी होती है। अगर एक्सपर्ट्स आने वाले समय में ब्याज में बढ़ोतरी की संभावना जाहिर कर रहे हैं तो फिक्स्ड रेट पर लोन लेना ठीक है।
फायदे : इस पर बाजार में हो रहे उतार-चढ़ाव और घटती-बढ़ती ब्याज दरों का कोई असर नहीं होता। हमेशा के लिए एक-सी ईएमआई फिक्स हो जाती है। सुरक्षा का भाव रहता है।
नुकसान : यह फ्लोटिंग रेट के मुकाबले 1 से 2.5 फीसदी ज्यादा होती है। अगर कभी ब्याज दरों में गिरावट आ जाए तो भी कस्टमर की ईएमआई में कमी नहीं होती। कई बार फिक्स्ड रेट पूरी अवधि के लिए न होकर सिर्फ कुछ सालों के लिए होता है। कुछ साल बाद इसमें बढ़ोतरी कर दी जाती है। इस पॉइंट को बैंक से साफ कर लें।
फ्लोटिंग रेट: फ्लोटिंग रेट होम लोन एक बेस रेट और फ्लोटिंग एलिमंट का मिक्सचर होते हैं। अगर बेस रेट में अंतर आएगा तो फ्लोटिंग रेट में भी अंतर आ जाएगा। लोन की अवधि के दौरान यह घटता-बढ़ता रहता है।
फायदे : फिक्स्ड रेट के मुकाबले अमूमन 1 से ढाई फीसदी कम होता है यानी पैसे की सेविंग होती है। बढ़ते-बढ़ते कभी-कभी यह फिक्स्ड रेट से ऊपर भी निकल सकता है, लेकिन ऐसा कुछ समय के लिए ही होता है। कुछ समय बाद यह रेट फिर से फिक्स्ड रेट से नीचे आ जाता है।
नुकसान : ईएमआई में बदलाव होता रहता है, जिसके चलते बजटिंग में दिक्कत होती है।
बात पते की : होम लोन लेने वाले तकरीबन 90 फीसदी लोग फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लेते हैं, फिर भी बजटिंग सुरक्षा और सरटेनिटी अगर आपकी प्रायॉरिटी हैं तो फिक्स्ड रेट चुन सकते हैं।
कैसे चुनें बैंक लोन किस बैंक से लेना है, इसका फैसला करते वक्त इन पॉइंट्स को ध्यान में रखें
1. ब्याज की दर कम-से-कम हो।
2. बैंक द्वारा लिया जाने वाला प्रॉसेसिंग चार्ज कम-से-कम हो।
3. अगर समय से पहले लोन की रकम का पूरा भुगतान कर रहे हैं तो बैंक कोई पेनल्टी न वसूलता हो। 4. कोई और छिपे हुए चार्ज न हों।
घर खरीदने के लिए लोन : घर खरीदने के लिए लिया जाने वाला लोन। होम लोन का मतलब आमतौर पर इसी लोन से लगाया जाता है।
घर में इंप्रूवमंट के लिए लोन : अगर आप घर को रेनोवेट कराना चाहते हैं या कुछ मरम्मत आदि करानी है, तो यह लोन लिया जा सकता है।
कंस्ट्रक्शन लोन : आपके पास प्लॉट (जमीन) पहले से हो तो उस पर मकान बनाने के लिए लिया जाने वाला लोन।
कन्वर्जन लोन : मान लीजिए आप जिस मकान में रह रहे हैं, उसके लिए आपने होम लोन लिया है। अब आप दूसरा घर खरीदना चाहते हैं, जिसके लिए आपको और पैसे की जरूरत है। कन्वर्जन लोन के माध्यम से पुराना लोन नए घर के लोन पर ट्रांसफर हो जाता है। इसमें जो एक्स्ट्रा पैसे की जरूरत होती है, वह भी शामिल होता है। ऐसा करने से कस्टमर पुराने लोन को चुकाने में दिए जाने वाले प्रीपेमंट चार्ज से बच जाता है।
लैंड परचेज लोन : मकान बनाने या सिर्फ इनवेस्टमंट की नजर से अगर आप जमीन खरीद रहे हैं तो लैंड परचेज लोन ले सकते हैं। तो ये तो रही लोन की बात अब ये किसे मिल सकता है....अब ये जान लेते है...
किसे मिल सकता है लोन
लोन की शुरुआत होते वक्त लोन लेने वाले की उम्र कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए।
लोन मचुअर होते वक्त उम्र 65 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
लोन लेने वाला या तो सैलरीड हो या सेल्फ एंम्प्लॉयड (अपना कारोबार आदि) हो। अगर कोई प्रॉबेशन पर है तो वह होम लोन का हकदार नहीं है। अब आइये हम ये भी तो जान ले कि कितना होम लोन हमे मिल सकता है....अपने सपने को पूरा करने के लिए...
कितना मिल सकता है लोन
बैंक आमतौर पर कुल मासिक बचत का करीब 40 गुना लोन देते हैं। सैलरी के रूप में आप महीने में जितनी रकम घर ले जाते हैं, उसमें से घरेलू खर्च में काम आने वाली रकम और किसी दूसरे लोन के लिए चुकाई जा रही ईएमआई की रकम को भी घटा दिया जाता है। इस तरह जो रकम मिलती है, उसका 40 गुना लोन मिलता है। अगर आप बिजनेस में हैं तो आपकी आमदनी नेट प्रॉफिट से मानी जाएगी, न कि कुल टर्नओवर से। वैसे, अलग-अलग बैंकों का अलग-अलग फॉर्म्युला होता है और लोन की रकम प्रॉपर्टी की कीमत पर भी निर्भर करती है। ज्यादातर बैंक प्रॉपर्टी की कीमत का 80 से 85 फीसदी तक लोन दे देते हैं, लेकिन यह सब बैंक पर निर्भर करता है। प्रॉपर्टी की कीमत प्रॉपर्टी की असली कीमत और रजिस्ट्री पर आने वाला खर्च भी शामिल होता है। तो ये तो रही यहां तक की जानकारी... अब लोन लेने का प्रोसेस..क्या है... हम बतायेगें... अपनी अगले पोस्ट में ...तब तक के लिए आपको करना होगा....थोड़ा सा इंतजा़र....
हमारे समाज ने हमें बहुत सी सुविधा...बहुत से हक दिये है.....लेकिन हम उमसे अनजान है...जी हां....आईपीसी के मुताबिक, कुछ अपराध ऐसे हैं, जिनमें दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौता कर सकते हैं और इसके बाद उन्हें कोर्ट-कचहरी के झंझटों से मुक्ति मिल सकती है।जेलों में बंद तमाम अपराधी ऐसे हैं, जो छोटे-मोटे जुर्म में सजा काट रहे हैं। अगर अपराधी या उसके वकील को सही जानकारी होती, तो इनमें से ज्यादातर मुकदमे साल-छह महीने या उससे भी कम वक्त में खत्म हो गए होते। भारतीय दंड संहिता में कुछ ऐसे अपराध परिभाषित किए गए हैं, जो जाने-अनजाने हो जाते हैं। ऐसे मामलों में अदालत में लंबे ट्रायल की जरूरत नहीं है। दोनों पक्ष चाहें तो आपस में समझौता कर मुकदमे को शुरू में ही खत्म करा सकते हैं। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 320 के तहत संबंधित अदालत में आवेदन देकर ऐसा किया जा सकता है। ये छोटे-मोटे अपराध होते हैं इसलिए कानून में व्यवस्था है कि दोनों पक्ष आपस में समझौता करें और अदालत को बताएं कि उनके बीच समझौता हो चुका है। इसके बाद अदालत ऐसे मामलों को खत्म करने का आदेश दे देती है। ये सभी मामले धारा 320 (1) आपराधिक प्रक्रिया संहिता संशोधन 2008 के अंतर्गत आते हैं। जैसे-
1. किसी की धार्मिक भावनाओं को कुछ शब्द कहकर ठेस पहुंचाना (धारा 298)।
2. हल्की चोट पहुंचाना (धारा 323 व 334)।
3. किसी व्यक्ति को गलत तरीके से कहीं रोक देना या कैद करके रखना (धारा 341 व 342)।
4. किसी व्यक्ति को मारना, किसी के उकसाने पर हमला करना या आपराधिक बल प्रयोग करना, उकसाने पर या किसी और वजह से किसी का अनादर करने के लिए उस पर हमला करना (धारा 352, 355, 358)। समझौता उस व्यक्ति से होगा, जिसे मारा गया या जिस पर बल प्रयोग किया गया।
5. ऐसी शरारत, जिससे किसी व्यक्ति विशेष को नुकसान (आर्थिक) हुआ, हो या उसकी चीज नष्ट कर दी गई हो (धारा 426, 427)।
6. किसी की जगह या जमीन पर जबरन घुस जाना (धारा 447)।
7. घर में जबरन घुसना (धारा 448)।
8. सेवा शर्तों का उल्लंघन करना। मान लीजिए कोई व्यक्ति, शारीरिक रूप से असहाय किसी व्यक्ति की सेवा के लिए नियुक्त हुआ, पर उसने अपना काम नहीं किया और इसकी वजह से असहाय व्यक्ति को तकलीफ हुई (धारा 491)। उस व्यक्ति से समझौता होगा, जिससे असहाय व्यक्ति की सेवा के लिए कॉन्ट्रैक्ट हुआ हो।
9. अडल्टरी (व्यभिचार) धारा 497। समझौता उस महिला के पति से होगा, जिसके साथ व्यभिचार किया गया।
10. किसी विवाहित महिला को बहकाकर ले जाना, उसे गलत काम करने के लिए कैद करके रखना (धारा 498)। महिला के पति के साथ समझौता।
11. बदनाम करना (धारा 500)।
12. किसी को मार डालने या गहरी चोट पहुंचाने की धमकी देना (धारा 506)।
13. किसी व्यक्ति से यह कहकर कोई काम करवाना कि ऐसा नहीं करोगे तो ईश्वर नाराज होंगे (धारा 508)।
नोट : समझौता उसके साथ होगा, जो शख्स प्रभावित हुआ है।
अपराध, जिनमें अदालत की आज्ञा से होगा समझौता- कुछ अपराध ऐसे भी हैं, जिनमें अदालत की आज्ञा से समझौता किया जा सकता है। दरअसल, ये गंभीर किस्म के अपराध होते हैं इसलिए ऐसे मामलों को समझौते के आधार पर खत्म करने के लिए अदालत की आज्ञा जरूरी है। पहले समझौता उस पक्ष से कर-ना होता है, जिसे नुकसान हुआ या चोट पहुंची। फिर दोनों पक्ष मिलकर एक आवेदन संबंधित अदालत में देते हैं कि उनके बीच समझौता हो गया है। अदालत से कहा जाता है कि वह उस समझौते को मान्यता दे। ऐसा मुकदमे के शुरू में, बीच में, अंत में, ट्रायल कोर्ट में, अपील कोर्ट में कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है। इन अपराधों में अदालत की आज्ञा लेकर समझौता किया जा सकता है। अमूमन अदालत की आज्ञा आसानी से मिल जाती है।
1. किसी को जानबूझकर गहरी चोट पहुंचाना (धारा 325)।
2. जानबूझकर या अचानक किसी उकसावे पर गहरी चोट पहुंचाना (धारा 335)।
3. कोई ऐसा काम जल्दबाजी या लापरवाही से करना, जिसमें किसी को चोट लग जाए और उसकी जान पर बन आए (धारा 337)।
4. कोई ऐसा काम जल्दबाजी में या लापरवाही से करना कि आम जनता की जिंदगी खतरे में पड़ जाए (धारा 338)।
5. किसी को गलत तरीके से तीन दिन या उससे ज्यादा दिनों तक कैद करके रखना (343), किसी को 10 दिन या उससे ज्यादा कैद कर रखना (344), किसी को गुप्त तरीके से कैद करके रखना (धारा 346)।
6. किसी महिला के साथ दुराचार के लिए उसके साथ बल प्रयोग करना (धारा 354)।
7. किसी को कैद में रखने के लिए बल प्रयोग करना (357)।
8. ऐसी जगह पर चोरी, जहां चोरी की गई चीज की कीमत दो हजार रुपये से ज्यादा न हो (धारा 379)।
9. क्लर्क या नौकर द्वारा ऐसी चीज की चोरी करना, जिसकी कीमत दो हजार रुपये से ज्यादा नहीं हो (धारा 381)।
10. बेईमानी करके किसी की संपत्ति हड़प लेना (धारा 403)।
11. कई बार हम किसी के पास अपना कोई सामान (जेवर आदि) सौंपकर जाते हैं कि वापस आकर ले लेंगे, लेकिन वापस मांगने पर वह हमें नहीं देता। अगर ऐसे सामान की कीमत दो हजार रुपये से ज्यादा नहीं है तो धारा 406 लगेगी।
12. ट्रांसपोर्ट कंपनी द्वारा ऐसा सामान हड़प लेना, जिसकी कीमत 2000 रुपये तक है (धारा 407)। मान लीजिए आपने अपना सामान ट्रक से कहीं भेजा, लेकिन ट्रक वाले ने सामान नहीं पहुंचाया और बीच में ही गायब कर दिया। 13. क्लर्क या नौकर द्वारा दो हजार रुपये तक की बेईमानी करना (धारा 408)।
14. जानबूझकर चोरी की संपत्ति (जिसकी कीमत 2000 रुपये तक है) खरीदना (धारा 411)।
15. चोरी की गई किसी ऐसी चीज को छुपाना या बेचना, जिसकी कीमत 2000 रुपये तक है (धारा 414)।
16. धोखेबाजी (धारा 417, 418)।
17. भेष बदलकर, नाम बदलकर धोखा देना (धारा 419)।
18. किसी कीमती चीज को ठगना, किसी को वह चीज देने के लिए मजबूर कर देना या किसी कीमती चीज को नष्ट कर देना (धारा 420)।
19. किसी चीज (संपत्ति) को छुपा देना, एक जगह से हटा देना या उसका वितरण उनके बीच रोक देना, जिनको वह मिलनी थी (धारा 421)। मसलन राशन की दुकानों पर आने वाला सामान जिन लोगों के बीच बंटना है, उनके बीच न बांटकर उसकी कालाबाजारी कर दी जाए। इसी तरह मान लीजिए आपने अपनी नियत जगह पर गाड़ी पार्क की। किसी ने आपकी गाड़ी वहां से हटाकर कहीं दूसरी जगह पार्क कर दी। ऐसे मामलों में माना जाता है कि दूसरी जगह गाड़ी पार्क करने वाले का मकसद गाड़ी पर हाथ साफ करना है।
20. किसी ट्रांसफर डीड को बेईमानी से एक्जिक्यूट करना, जिसमें ट्रांसफर की कीमत के बारे में झूठा स्टेटमेंट हो (धारा 423)। ऐसी संपत्ति को छुपा देना या हटा देना (धारा 424)।
21. किसी के जानवर को मारना या अंग-भंग करना (धारा 428)।
22. किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए उसके पानी की धारा मोड़ देना (धारा 430)। खेतों में लगाए गए पानी को अगर कोई मोड़कर अपने खेत में लगा लेता है, तो यह मामला बनता है।
24. झूठा ट्रेडमार्क या संपत्ति का मार्क व्यवहार में लाना (धारा 482)।
25. जानबूझकर नकली मार्क का सामान बेचना, खरीदना (धारा 486)। मसलन कोई किसी सामान को टिस्को का झूठा मार्क लगाकर बेच देता है तो यह मामला बनेगा।
26. पति या पत्नी के जिंदा रहते दूसरा विवाह रचाना (धारा 494)।
कबूल करने पर जल्द छुटकारा कई ऐसे अपराध हैं, जिनमें अधिकतम सजा दो साल से कम है। ऐसे मुकदमों में संक्षिप्त ट्रायल का प्रावधान है। आईपीसी की धारा 379, 380 और 381 को संक्षिप्त ट्रायल में लाया जा सकता है, बशर्ते चोरी की गई संपत्ति की कीमत दो हजार रुपये तक हो। ऐसे मामलों में अगर किसी का करिअर, नौकरी आदि खतरे में नहीं हैं तो अभियुक्त अपनी गलती मानकर सजा को काफी कम करवा सकता है और ट्रायल से जल्दी छुटकारा पा सकता है। मुकदमे की शुरुआती तारीख में ही ऐसा कर लेना चाहिए। प्ली बारगेनिंग 2005 के संशोधन से एक नई धारा 265-ए आपराधिक प्रक्रिया संहिता में जोड़ी गई। इसका नाम है प्ली बारगेनिंग यानी तर्कपूर्ण सौदेबाजी। पुलिस द्वारा दर्ज अपराधों में अपराधी प्ली बारगेनिंग का आवेदन कर सकता है। प्ली बारगेनिंग सिर्फ उन अपराधों में हो सकती है, जिनमें सात साल से कम सजा का प्रावधान है। शर्त यह भी है कि व्यक्ति का यह पहला अपराध हो। प्ली बारगेनिंग का आवेदन करने के बाद अदालत पीडि़त पक्ष को नोटिस भेजेगी। पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और अभियुक्त के वकील को भी हाजिर होने के लिए कहेगी। अभियुक्त और पीडि़त भी अपने वकील के साथ रह सकते हैं। ये सब बैठकर पीडि़त को आथिर्क मुआवजा देने के मुद्दे पर बात करेंगे। (यह व्यवस्था उन अपराधों के लिए नहीं है, जिनकी वजह से देश की आथिर्क, सामाजिक स्थिति प्रभावित होती है। वे अपराध भी इस कैटिगरी में नहीं आते हैं, जो किसी महिला या 14 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ किए गए हैं) अगर कोई संतोषजनक हल निकल जाता है, तो सभी संबंधित पक्ष और कोर्ट के पीठासीन अधिकारी इस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करेंगे और आखिर में कोर्ट का फैसला आएगा। सारी बातें सुलह करके जुर्माना देकर सुलझ जाती हैं तो अदालत अभियुक्त को डांट लगाकर और आईपीसी की धारा 360 के तहत अच्छा आचरण करने का निदेर्श देकर बॉन्ड पर रिहा कर सकती है। इस धारा के तहत दिया गया फैसला अंतिम होगा। उसकी अपील या रिविजन नहीं होगा। हां, किसी खास परिस्थिति में रिट याचिका दायर की जा सकती है।
शादी संबंधी मामले
शादी से संबंधित मामलों जैसे दहेज प्रताड़ना या दूसरी तरह के शारीरिक, मानसिक अत्याचार में (ऐसे मामले जिनमें धारा 498-ए के तहत मुकदमा दायर होता है) कानून समझौता करने की इजाजत नहीं देता है, लेकिन अगर पति, पत्नी या ससुरालवालों में समझौता हो जाए तो हाई कोर्ट में रिट दायर करके मामला निबटाया जा सकता है। इसी तरह आपसी सहमति से तलाक के मामलों में दोनों पक्ष हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 बी (1) और धारा 13 बी (2) के तहत एक साथ अर्जी डाल सकते हैं और दो-चार दिनों में तलाक ले सकते हैं। नेकचलनी से पाएं राहत (प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट) आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 360 व 361 के मुताबिक, अगर 21 साल से बड़ा कोई शख्स किसी ऐसे अपराध में सजा पाता है, जिसमें सजा सिर्फ जुर्माना या सात साल की अधिकतम कैद है, तो वह अदालत से प्रार्थना कर सकता है कि उसे जेल न भेजा जाए। इसकी जगह उससे सजा अवधि तक का बॉन्ड भरवा लिया जाए कि वह इस दौरान कोई जुर्म नहीं करेगा। यह व्यवस्था सिर्फ उसी हालत में है, जब व्यक्ति का पहला अपराध हो। ऐसा आवेदन देने पर अदालत अभियुक्त की उम्र, चरित्र, फैमिली और क्रिमिनल बैकग्राउंड का प्रोबेशनरी ऑफिसर द्वारा पता लगवाकर उसे प्रोबेशन पर छोड़ देगी, जिससे वह एक शांतिप्रिय नागरिक बनकर अपने घर, करियर, व्यवसाय आदि की देखभाल कर सके। ऐसा आवेदन मुकदमे की किसी भी स्टेज पर (ट्रायल, अपील, रिविजन) दिया जा सकता है। प्रोबेशन पर छोड़ने के लिए अदालत की शर्तों को मानना जरूरी है, नहीं तो अदालत आदेश को कैंसल कर सकती है और अभियुक्त को जेल काटनी पड़ सकती है।
कुछ टिप्स
अगर अभियुक्त की उम्र 16 साल से कम है, तो शुरू में ही अदालत में आवेदन व दूसरे सर्टिफिकट देकर या ऑसिफिकेशन टेस्ट करवाकर कहें कि बच्चे का ट्रायल चिल्डेन कोर्ट में होना चाहिए। ऐसा करके उसे जमानत दिलवाई जा सकती है। अगर सजा होती है, तो उसे जेल नहीं जाना पड़ेगा। आप किसी मुकदमे में पीड़ित हों या अभियुक्त, अगर चाहते हैं कि मुकदमा जल्द खत्म हो जाए तो आपको मुकदमे के सभी कागजों की एक-एक कॉपी अपने पास रखनी चाहिए। मुकदमे की पूरी फाइल मेंटेन करें। अपने वकील के अलावा कानून के दूसरे जानकारों से भी सलाह-मशवरा करते रहें। संबंधित कानून को भी जानने की कोशिश करें। कोई महत्वपूर्ण बात अदालत को बतानी है, तो खुद भी बताएं।
दस्तावेज फाइल करने के लिए, गवाही देने के लिए या फिर किसी भी काम के लिए तारीख पड़े, तो उस काम को जरूर करें। सच कहना भी मुकदमों को लंबा खिंचने से बचाता है। आज जानकार इस बात को जरूरी समझते हैं कि ट्रायल कोर्ट में मैजिस्ट्रेट, पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और पुलिस को कानून की जानकारी स्पेशल ट्रेनिंग के जरिए दी जानी चाहिए। ऐसा होने के बाद पुलिस मुकदमे का रजिस्ट्रेशन और पड़ताल जल्दी कर पाएगी। इसी तरह पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और मैजिस्ट्रेट भी मुकदमे का ट्रायल जल्दी और सही ढंग से कर पाएंगे। क्या आपको ये पता था...नहीं ना हमें भी नहीं था...
कमलेश जैन (लेखिका सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिसिंग एडवोकेट हैं।)
पूरे
प्रकरण को दो तरह से देखा जा सकता है. मैं दोनों विश्लेषण लिख देता हूँ, आप जिसे चाहें सही मानें और उसी विश्लेषण का चश्मा पहन भाजपा का भविष्य देखें. पहला विश्लेषण यह एक दिशाहीन नेतृत्व द्वारा लोगों का ध्यान, भाजपा को चुनौती दे रही अगली समस्याओं से हटाने की कोशिश है. पार्टी के समक्ष चुनौती है- आडवाणी के बाद कौन? सत्ताधारी नेतृत्व का कांग्रेस का नेतृत्व किस युवा दिशा में जा रहा है सबको दिख रहा है. भाजपा में आडवाणी फ़िलहाल पद छोड़ने के मूड में नहीं हैं और सुषमा, जेटली, नरेंद्र मोदी, अनंत कुमार जैसे उनके समर्थकों की टोली को अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा. 2004 और 2009 के दो आम चुनाव हारने के बाद भाजपा के समक्ष संगठन को वापिस खड़ा करने और कांग्रेस के सामने मज़बूत विपक्ष की भूमिका अदा करने की चुनौती है. राजनाथ सिंह का कार्यकाल भी अगले साल की शुरुआत में समाप्त होने जा रहा है. पार्टी को यह सोचना चाहिए कि उनके बाद पार्टी की बागडोर किसके हाथ में होगी ना कि आडवाणी बनाम राजनाथ सिंह के छद्म युद्ध में फँसना चाहिए.पार्टी को राजस्थान में चल रही बग़ावत पर ध्यान देना चाहिए. साथ ही 2014 में लगातार तीसरा चुनाव वो ना हारे इस बारे में चिंतन करना चाहिए. राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और भाजपा में टकराव नहीं सामंजस्य कैसे बढ़े इस पर सोचना चाहिए. भाजपा का भविष्य पिछले पाँच-छह सालों के मुकाबले और उज्ज्वल करने का एक मात्र रास्ता स्वस्थ और ईमानदार आत्मचिंतन ही होगा. पर चिंतन बैठक में क्या होता है? जिन्ना पर पुस्तक और उसकी प्रशंसा जसवंत सिंह की पार्टी से विदाई का कारण बनती है. और एक नॉन इश्यू को इतना तूल दे दिया जाता है कि वो चिंतन बैठक में आगे होने वाली सभी कार्यवाही पर हावी हो जाता है. कुल मिला कर पार्टी अनुशासन और सिद्धांतों के नाम पर काफ़ी वाहवाही बटोरने की कोशिश करती है पर अंत में असली मुद्दों का सामना करने का साहस नहीं जुटा पाती.
अब विश्लेषण के दूसरे पहलू पर भी नज़र डालें जिसे भाजपा नेता मीडिया को बेचने का प्रयास कर रहे हैं. इस वर्ग का कहना है कि पार्टी में अब अनुशासनहीनता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी चाहे नेता कितना ही बड़ा क्यों ना हो अगर वह पार्टी के सिद्धांतों, सोच और दर्शन के ख़िलाफ़ जाएगा तो उसके साथ वही होगा जो जसवंत सिंह के साथ हुआ है. जसवंत सिंह को उदाहरण बनाना पार्टी के लिए आसान भी है. कहने को तो वो बड़े कद्दावर नेता हैं, रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालय सँभाल चुके हैं. पर ज़मीनी राजनीति पर उनके पार्टी में रहने या नहीं रहने से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता. जसवंत सिंह कभी भी जननेता नहीं रहे हैं. तो पार्टी उन पर निशाना साध कर वसुंधरा राजे जैसे नेताओं को भी चेता रही है जिन्होंने बाग़ी तेवर अपनाए हुए हैं. भाजपा नेतत्व जसवंत के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर आरएसएस को भी मनाने का प्रयास कर रहा है जो मौजूदा वक़्त की ज़रूरत है. जसवंत कभी भी आरएसएस की पसंदीदा सूची में शामिल नहीं थे और मामला इस बार सिर्फ़ जिन्ना का ही नहीं था. जसवंत सिंह ने अपने बयानों में आरएसएस के दिल के सबसे क़रीबी कांग्रेसी नेता वल्लभ भाई पटेल पर भी प्रहार कर पार्टी से अपनी बर्ख़ास्तगी का मार्ग स्वयं ही प्रशस्त किया है. कुल मिला कर इस वर्ग का यह मानना है कि समय सख़्त कार्रवाई और राजनीतिक संदेश देने का था और पार्टी ने वही किया है. एक तीर से कई निशाने साधे गए हैं. दोनों में से कौन सी सोच सच्चाई के ज्यादा क़रीब है यह फ़ैसला मैं आप पर छोड़ता हूँ. हाँ एक बात तय है कि अगर जसवंत सिंह के ख़िलाफ़ मुद्दा सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़िन्ना पर उनकी पुस्तक है तो मैं जसवंत सिंह के उस बयान से सहमत हूँ कि विचारों पर प्रतिबंध और कार्रवाई की राजनीति कोई बहुत स्वस्थ परंपरा नहीं है.
( बीबीसी के सजीव द्वारा )
(गुलजार हवा के ताजे झोकें की तरह हैं। वो हमेशा अपने लफ्जों से तरोताजा करते रहे हैं। उनकी जिंदगी उसके लिखे अल्फाजों की तरह है। जहां एहसास है, छुअन है और ताजगी है। गुलजार का रेनकोट फिल्म का ये संवाद करतन पर संजोने की कोशिश )
किसी मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं
ना जाने इस दफा क्यूँ इनमे सीलन आ गयी है
दरारें पड़ गयी हैं और सीलन इस तरह बैठी है
जैसे खुश्क रुक्सारों पे गीले आसूं चलते हैं
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर कि खिड़कीयों के कांच पर उंगली से लिख जाती थी सन्देशे
देखती रहती है बैठी हुई अब, बंद रोशंदानों के पीछे से
दुपहरें ऐसी लगती हैं, जैसे बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं,
ना कोइ खेलने वाला है बाज़ी, और ना कोई चाल चलता है,
ना दिन होता है अब ना रात होती है, सभी कुछ रुक गया है,
वो क्या मौसम का झोंका था, जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
(जिन्ना की तारीफ करके जसवंत सिंह फंस चुके हैं। इतिहास को देखने का उनका सलीका सवालों के घेरे में। करतन में बीबीसी से साभार जसवंत सिंह के कारनामे पर लेख को संजोने की कोशिश)
बीबीसी की राय
इक्कीसवीं सदी के भारत में जब जब मोहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा होगी ... उसके पीछे भारतीय जनता पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता होगा...कुछ साल पहले तक महज़ इस ख़याल को भी लोग किसी कम अक्ल के दिमाग की उपज बता उपहास उडाते नहीं थकते.... पर जब 2005 में लाल कृष्ण आडवाणी अपनी पाकिस्तान यात्रा पर गए और जिन्ना साहब को एक बड़े धर्म निरपेक्ष नेता होने का ख़िताब अता किया और काएदे आज़म की भूरी भूरी प्रशंसा की तो ख़ासा बड़ा बवाल पैदा हो गया....कुछ ही हफ्तों में आडवाणी जी के पुराने साथी, उनके द्वारा बनाये गए और प्रोमोट किए गए नेता उनके विरोध का राग अलाप रहे थे और हिंदुत्व के लौह पुरुष को मुस्लिम तुष्टिकरण के मुद्दे पर कटघरे में खडा कर दिया गया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस मुद्दे पर जो उनसे नाता तोड़ा वह तार अब तक वापस नहीं जुड़े हैं.और जिन्ना प्रकरण के बाद से आडवाणी जी कभी बीजेपी के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए.यह एक अलग बहस का विषय है की आडवाणी के साथ जो हुआ वह सही था या ग़लत.क्यों बीजेपी और आरएसएस उनकी उस रणनीति को नहीं समझ पाए जिसके ज़रिये आडवाणी भारतीय मुसलमानों में अपनी मुस्लिम विरोधी छवि तोड़ने की कोशिश कर रहे थे? बहरहाल उस प्रकरण का बकौल आडवाणी जी इतना असर ज़रूर हुआ की उनकी पाकिस्तान में छवि स्पष्ट हो गयी और सीमा पार से उनके पास प्रशंसा के कई ख़त आए. पर भारतीय राजनीति के परिपेक्ष में जिन्ना विवाद का ज़बरदस्त खामियाजा आडवाणी को भुगतना पड़ा. अब बारी जसवंत सिंह जी की है. उन्होंने कायदे आज़म पर एक ६५० पन्नों की पुस्तक लिख दी है जिसमें न सिर्फ उन्होंने जिन्ना को एक महानायक की संज्ञा दी है बल्कि विभाजन के लिए जवाहर लाल नेहरु और ब्रितानी हुकूमत दोनों को जिन्ना जितना ही दोषी माना है.
जसवंत की दलील
' मेरा किताब लिखने का मकसद किसी को सही और किसी को ग़लत ठहराना नहीं बल्कि इतिहास के पन्ने पलट विभाजन के कारणों को समझने का है'
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) का कहना है कि दुनिया की अर्थव्यवस्थाएँ मंदी के दौर से निकलनी शुरू हो गई है लेकिन ये अनियमित और धीमी होगी.आईएमएफ़ का कहना है कि वित्तीय बाज़ार और बैंकों के सामने अब भी समस्याएँ हैं.उसका कहना है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं की विकास की गति अगले साल के अंत में ही ज़ोर पकड़ पाएगी.आईएमएफ़ का कहना है कि अभूतपूर्व आर्थिक और वित्तीय क़दमों के कारण ये स्थिरता आई है.बीबीसी संवाददाता का कहना है कि आईएमएफ़ की रिपोर्ट कोई बहुत सुनहरी तस्वीर नहीं पेश करती.दरअसल आईएमएफ़ का अब भी मानना है कि वैश्विक आर्थिक संकट अभी समाप्त नहीं हुआ है.भारत की विकास दर इधर आईएमएफ़ ने वर्ष 2009 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान बढ़ाकर 5.4 फ़ीसदी कर दिया है.इसके पहले आईएमएफ़ ने भारत की विकास दर 4.5 फ़ीसदी रहने की बात कही थी.आईएमएफ़ का मानना है कि चीन की विकास दर 7.5 फ़ीसदी रहेगी जबकि पहले उसने ये दर 6.5 फ़ीसदी रहने का आकलन किया था.आईएमएफ़ का मानना है कि वित्तीय संकट इसलिए गहराया क्योंकि वित्तीय संस्थाएं ग़ैरज़िम्मेदाराना ढंग से उधार दे रही थीं.साथ ही इसके गंभीर होने की एक वजह ये भी थी कि दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक साथ गिरावट आई.
देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की शाने पे है
उस शोख़ का सर आज की रात
या फिर
क्या हुआ मैंने अगर हाथ बढ़ाना
आपने खुद भी तो दामन न बचाना चाहा
मजाज़ के अंदर के शायर ने जन्म लिया उनके अलीगढ़ विश्विद्यालय में दाख़िला लेने के बाद जबकि उन्हें कुछ ऐसे ही लोगों की सोहबत मिली. अलीगढ़ के माहौल ने मजाज़ के अंदर के शायर को पैदा किया मज़ाज़ की छोटी बहन हमीदा सालिम उन दिनों के बारे में बताती हैं, "अलीगढ़ के माहौल ने मजाज़ का शायरी की ओर रुझान पैदा किया. वहाँ उनकी सच्चे तौर पर क़द्र हुई."मज़ाज़ कमउम्री में ही शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच गए. हर मुशायरा उनके बिना सूना समझा जाता था.कहा जाता था कि जिगर मुरादाबादी के अलावा अगर किसी शायर के तरन्नुम के लोग दीवाने थे तो वह थे मजाज़.....प्रगतिशील आंदोलन के शुरू होने के बाद मजाज़ की शायरी का रंग कुछ इस तरह बदला
बोल अरी ओ धरती बोलराजसिंहासन डावांडोल
या
जी में आता है यह सारे चाँद तारे नोच लूं
इस किनारे नोच लूँ और उस किनारे नोच लूं
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूं
ए ग़मे दिल क्या करूँ ऐ वहशते दिल क्या करूँ
इश्क़ और फिर शराबनोशी. इन दो ने मजाज़ पर कुछ ऐसा क़ब्ज़ा किया कि उनकी पूरी दुनिया जैसे यहीं तक सिमट कर रह गई.जिसे चाहा वह मिली नहीं और फिर शराब के ज़रिए ग़म भुलाते-भुलाते मजाज़ ने अपने आप को खो दिया. इश्क़ में पागलपन ने उन्हें राँची के मानसिक चिकित्सालय पहुँचा दिया और शराब ने उनसे सोचने-समझने की क़ुव्वत छीन ली.एक ऐसा प्रतिभाशाली कवि जिसने कम उम्र मे ही शोहरत के नए आयाम तय कर लिए थे अपनी ज़िंदगी के कुल चवालीस साल में ही इतना कुछ दे गया जो उर्दू साहित्य को समृद्ध करने के लिए काफ़ी था.पाँच दिसंबर, 1955 को मजाज़ ने दुनिया को अलविदा कह दिया.आज उनकी तुलना कीट्स से की जाती है और उनका एकमात्र कविता संग्रह आहंग उर्दू साहित्य की एक ऐसी धरोहर माना जाता है जो अनमोल है.